सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा दायर एक रिट याचिका खारिज कर दी।
याचिकाकर्ता ने अपनी बकाया फीस का भुगतान करने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ परमादेश जारी करने की मांग की थी।
अदालत ने इस बात पर संदेह व्यक्त किया कि क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत ऐसी याचिका पर विचार किया जा सकता है, खासकर क्योंकि याचिकाकर्ता की फीस के अधिकार को लेकर विवाद था।
अदालत ने यह कहते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि वह इस मामले में कोई और आदेश पारित नहीं कर सकती।
अदालत ने याचिकाकर्ता को अन्य उपाय अपनाने की भी सलाह दी और सुझाव दिया कि वह पैसे की वसूली के लिए मुकदमा दायर करे।
न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त किया कि राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाला एक वकील अपनी फीस वसूलने के लिए राज्य के खिलाफ रिट याचिका दायर करेगा।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि समान स्थिति वाले अधिकारियों को शीर्ष अदालत द्वारा राहत दी गई थी, लेकिन न्यायाधीश ने बताया कि राज्य सरकार के एक आदेश से पता चला कि सभी बकाया बिल याचिकाकर्ता को वितरित कर दिए गए थे और फीस के लिए उनका अधिकार विवादित था।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि फीस वसूलने के लिए रिट याचिका दायर करना उचित नहीं था और याचिकाकर्ता को पहले ही एक बड़ी राशि मिल चुकी थी।
केस का शीर्षक: विजय कुमार शुक्ला बनाम यूपी राज्य और अन्य। WP(C) संख्या 217/2018]