सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने इस सवाल पर फैसला सुनाते हुए कि क्या गैर-पंजीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) अनुबंध के समय पंजीकरण के बिना भी MSMED अधिनियम, 2006 की धारा 18 के तहत विवाद समाधान का लाभ उठा सकते हैं, इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है।
न्यायमूर्ति पामिडीघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला NBCC (India) Ltd. बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य (सिविल अपील संख्या 3705/2024) से संबंधित है। इसमें NBCC (India) Ltd. और एक छोटे उद्यम साकेत इंफ्रा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच विवाद शामिल था। साकेत इंफ्रा ने MSMED अधिनियम के तहत पंजीकरण कराया था, लेकिन NBCC ने पश्चिम बंगाल सूक्ष्म और लघु उद्यम सुविधा परिषद की मध्यस्थता के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति जताई।
NBCC का तर्क था कि अनुबंध के निष्पादन के बाद उद्यम का पंजीकरण किया गया, जिससे यह MSMED अधिनियम की धारा 18 के प्रावधानों को लागू करने के योग्य नहीं है।
मूलभूत कानूनी प्रश्न
1. धारा 18 की व्याख्या: क्या “विवाद के किसी भी पक्ष” में केवल अनुबंध से पहले पंजीकृत MSMEs शामिल हैं?
2. पंजीकरण की भूमिका: क्या धारा 8 के तहत मेमोरेंडम फाइल करना विवाद समाधान के लिए एक अनिवार्य शर्त है?
3. पिछले फैसलों के साथ टकराव: यह मुद्दा सिल्पी इंडस्ट्रीज बनाम केरल राज्य सड़क परिवहन निगम और गुजरात राज्य सिविल सप्लाईज कारपोरेशन लिमिटेड बनाम महाकाली फूड्स प्राइवेट लिमिटेड जैसे मामलों में दिए गए फैसलों के साथ कैसे मेल खाता है?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति पामिडीघंटम श्री नरसिम्हा ने कहा कि धारा 18 की भाषा व्यापक है और यह विवाद समाधान का लाभ उठाने का अधिकार केवल पंजीकृत MSMEs तक सीमित नहीं करती। अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 8 के तहत मेमोरेंडम फाइल करना सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए अनिवार्य नहीं है, क्योंकि कानून में “may” शब्द का उपयोग किया गया है।
अदालत ने पाया:
– धारा 18 में “विवाद के किसी भी पक्ष” में पंजीकरण की स्थिति की परवाह किए बिना आपूर्तिकर्ता शामिल हैं।
– धारा 8 के तहत पंजीकरण MSME के अधिकारों पर पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं डाल सकता।
– MSMED अधिनियम का उद्देश्य MSMEs के हितों को बढ़ावा देना और न्याय तक पहुंच को आसान बनाना है।
हालांकि, अदालत ने यह स्वीकार किया कि पिछले निर्णयों में विरोधाभास हैं और अंतिम निर्णय के लिए इस मुद्दे को बड़ी बेंच को भेजा।
अदालत की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने MSMED अधिनियम की मंशा और न्याय तक पहुंच के संवैधानिक कर्तव्य पर कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
– “क़ानूनी उपचार का उद्देश्य अधिकारों और उपचार के बीच की खाई को पाटना और न्याय को सुलभ, किफायती और प्रभावी बनाना है।”
– “धारा 18 में उपयोग किया गया ‘विवाद के किसी भी पक्ष’ शब्द न्याय के व्यापक और समावेशी ढांचे का संकेत देता है।”
कानूनी प्रतिनिधित्व
अपीलकर्ता NBCC (India) Ltd. की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गोपाल संकरणारायणन ने बहस की, जबकि उत्तरदाता साकेत इंफ्रा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सुश्री मधुमिता भट्टाचार्य और श्री रोशन संथालिया ने किया।