गैर-पंजीकृत दस्तावेज विशिष्ट निष्पादन वाद में मौखिक बिक्री समझौते के प्रमाण के रूप में स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

मुरुगनंदम बनाम मुनियंडी (मृतक) वकील के माध्यम से, सिविल अपील संख्या 6543 / 2025 में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि क्या एक गैर-पंजीकृत दस्तावेज, जो एक मौखिक बिक्री समझौते का प्रमाण माना जा रहा है, विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) वाद में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

यह अपील मद्रास हाईकोर्ट द्वारा CRP.PD संख्या 2828/2015 में पारित निर्णय के विरुद्ध दायर की गई थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा 01.01.2000 दिनांकित दस्तावेज को चिह्नित करने हेतु दायर याचिका खारिज करने के निर्णय को बरकरार रखा गया था।

मामला व पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ता मुरुगनंदम ने विशिष्ट निष्पादन एवं स्थायी निषेधाज्ञा हेतु मदुरंतकम की जिला मुंसिफ न्यायालय में O.S. No. 78 of 2012 वाद दायर किया था। दावा किया गया कि 01.01.2000 को एक बिक्री समझौता हुआ था, जिसके तहत ₹5,000 की आंशिक राशि दी गई और संपत्ति का कब्जा सौंप दिया गया। इसके बाद 01.09.2002 को मौखिक रूप से बिक्री दर ₹550 प्रति सेंट तय हुई और आगे भुगतान किया गया।

अपीलकर्ता ने मूल समझौते को रिकॉर्ड पर लाने हेतु आदेश 7 नियम 14(3) व धारा 151 सीपीसी के अंतर्गत अंतरिम आवेदन (I.A. No. 1397 of 2014) दाखिल किया। ट्रायल कोर्ट ने 21.04.2015 को यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि दस्तावेज अप्रमाणिक, बिना स्टाम्प और पंजीकरण के है, जो भारतीय स्टाम्प अधिनियम की धारा 35 व पंजीकरण अधिनियम की धारा 17 का उल्लंघन करता है।

हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका में ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया।

सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा

न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की पीठ ने अपीलकर्ता की उस दलील पर विचार किया जिसमें कहा गया कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 49 के प्रावधान के तहत एक गैर-पंजीकृत दस्तावेज को विशिष्ट निष्पादन वाद में अनुबंध के साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

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न्यायालय ने S. Kaladevi बनाम V.R. Somasundaram, (2010) 5 SCC 401 के अपने पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा:

“एक ऐसा दस्तावेज़ जो पंजीकरण योग्य है लेकिन पंजीकृत नहीं है, उसे विशिष्ट निष्पादन वाद में अनुबंध के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है… जब एक गैर-पंजीकृत बिक्री विलेख को पूर्ण बिक्री के प्रमाण के रूप में नहीं, बल्कि एक मौखिक बिक्री समझौते के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो वह धारा 49 के प्रावधान के अंतर्गत स्वीकार किया जा सकता है।”

न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि उक्त दस्तावेज पहले ही वादपत्र में उल्लेखित था और उसकी छायाप्रति संलग्न की गई थी। अपीलकर्ता का कहना था कि वह इसे केवल मौखिक समझौते के साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे न्यायालय ने स्वीकार किया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दस्तावेज की वैधता या प्रभाविता पर कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है और प्रतिवादी को यह चुनौती देने का पूरा अधिकार रहेगा कि वह दस्तावेज प्रासंगिक है या नहीं।

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए, ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि O.S. No. 78/2012 में I.A. No. 1397/2014 को स्वीकार किया जाए तथा दिनांक 01.01.2000 के दस्तावेज को चिह्नित करने की अनुमति दी जाए।

मुकदमे में किसी भी पक्ष को लागत नहीं दी गई।

प्रकरण: मुरुगनंदम बनाम मुनियंडी (मृतक) वकील के माध्यम से, सिविल अपील संख्या 6543 / 2025

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