घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की एक महत्वपूर्ण व्याख्या करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि कोई निर्माणाधीन फ्लैट ‘साझा आवास’ (Shared Household) की श्रेणी में नहीं आता। अतः पति को ऐसे फ्लैट की बाकी किश्तें चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, भले ही वह उसकी पत्नी के साथ संयुक्त रूप से बुक किया गया हो।
न्यायमूर्ति मंजुषा देशपांडे ने यह आदेश शुक्रवार को उस याचिका को खारिज करते हुए पारित किया, जिसे गोरेगांव निवासी 45 वर्षीय महिला ने दायर किया था। याचिकाकर्ता ने अपने 55 वर्षीय पति—जो वर्तमान में अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं—को मलाड वेस्ट में ₹3.52 करोड़ के एक निर्माणाधीन फ्लैट की शेष राशि चुकाने का निर्देश देने की मांग की थी। यह फ्लैट पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त रूप से बुक किया गया था।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि चूंकि उस 1,029 वर्ग फुट के फ्लैट का कब्जा अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है और भुगतान भी अधूरा है, इसलिए वह संपत्ति घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2(स) के तहत ‘साझा आवास’ की परिभाषा में नहीं आती।

इस दंपति का विवाह वर्ष 2013 में हुआ था और प्रारंभ में वे ठाणे के एक किराए के फ्लैट में रहते थे। वर्ष 2019 में पति अमेरिका चले गए, और पत्नी ने उनके विवाहेतर संबंधों का आरोप लगाया। फरवरी 2020 में पति के भारत लौटने के बाद दोनों ने संबंध सुधारने का प्रयास किया और उसी समय पति ने मलाड स्थित फ्लैट को बुक किया। परंतु उनके बीच फिर से मतभेद हो गए, जिसके बाद पत्नी ने वर्ष 2021 में घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करवाई।
बोरीवली की मजिस्ट्रेट अदालत में कार्यवाही के दौरान महिला ने अधिनियम की धारा 19 का हवाला देते हुए अपने पति को फ्लैट की शेष किश्तें भरने का निर्देश देने की मांग की, ताकि उसके आवासीय अधिकार सुरक्षित रह सकें।
हालांकि, जून 2024 में मजिस्ट्रेट अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी, और अक्टूबर में डिंडोशी सेशंस कोर्ट ने भी इस निर्णय को बरकरार रखा। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में अपील दायर की।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम महिला को ‘साझा आवास’ में रहने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार तभी लागू होता है जब उस संपत्ति पर वास्तविक रूप से कब्जा या निवास हो। न्यायमूर्ति देशपांडे ने कहा, “फ्लैट अभी निर्माणाधीन है और दोनों पक्षों के कब्जे में नहीं है। इसलिए इसे साझा आवास नहीं माना जा सकता।”
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि पति या उसके नियोक्ता को उस अधूरी संपत्ति के लिए भुगतान करने का निर्देश देना कानून की सीमाओं से परे होगा। “ऐसा आदेश कानून की भावना से बहुत आगे जाने वाला होगा,” कोर्ट ने कहा, यह स्पष्ट करते हुए कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत ऐसे वित्तीय दायित्व थोपे नहीं जा सकते जो अपूर्ण और गैर-अधिग्रहित संपत्तियों से संबंधित हों।