वर्ष 2020 में चर्चित वकील बाबर क़ादरी की हत्या मामले में बड़ी प्रगति करते हुए एक विशेष एनआईए अदालत ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (कश्मीर विंग) के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मियां अब्दुल क़य्यूम पर गैरकानूनी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत आरोप तय कर दिए हैं।
77 वर्षीय क़य्यूम, जो अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कार्यकारी सदस्य और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस जावेद इक़बाल वानी के ससुर हैं, को 25 जून 2024 को मुख्य साज़िशकर्ता के रूप में गिरफ़्तार किया गया था। अधिकारियों का आरोप है कि यह हत्या पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) के आतंकियों द्वारा अंजाम दी गई थी।
सूत्रों के अनुसार, एनआईए अधिनियम के तहत गठित विशेष अदालत ने क़य्यूम पर यूएपीए की धाराओं 16, 18 और 38 के अंतर्गत आतंकवाद और आतंकी साज़िश रचने के आरोप तय किए हैं। यह कार्रवाई राज्य जांच एजेंसी (SIA) की विस्तृत जांच के बाद हुई है, जिसने जुलाई 2023 में मामले की कमान संभाली थी।

मानवाधिकार मामलों और टीवी बहसों में सक्रिय अधिवक्ता बाबर क़ादरी की 24 सितंबर 2020 को श्रीनगर स्थित आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इससे पहले वर्ष 2018 में भी उन पर हमला हुआ था, जिसमें वे बाल-बाल बचे थे। शुरुआती जांच में लश्कर कमांडर साक़िब मंज़ूर की संलिप्तता सामने आई थी, जिसे 2022 में एक मुठभेड़ में मार गिराया गया।
क़ादरी, कश्मीर लॉयर्स क्लब के संस्थापक थे और वे क़य्यूम के कटु आलोचक माने जाते थे। वह अक्सर आरोप लगाते थे कि क़य्यूम बार एसोसिएशन को अलगाववादी हितों के अनुरूप चला रहे हैं।
इस मामले में पहला आरोपपत्र 2021 में छह अभियुक्तों के खिलाफ दायर किया गया था। अगस्त 2022 में पुलिस ने क़य्यूम के श्रीनगर स्थित घरों पर छापे मारकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, बैंक स्टेटमेंट और दस्तावेज़ जब्त किए। इसके बाद एसआईए ने इस मामले में सूचना देने पर ₹10 लाख का इनाम घोषित किया।
दिसंबर 2023 में एसआईए ने क़य्यूम के खिलाफ 340 पृष्ठों का पूरक आरोपपत्र दाखिल किया, जिसमें हत्या समेत आईपीसी और यूएपीए की कई धाराएँ शामिल थीं। उच्च न्यायालय ने बाद में मुक़दमे की सुनवाई जम्मू स्थानांतरित कर दी, यह कहते हुए कि क़य्यूम न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रहे हैं और क़ादरी के परिवार को डराने की कोशिश कर रहे हैं।
एसआईए के आरोपपत्र के अनुसार, क़य्यूम लंबे समय से अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के करीबी रहे और उन्हें अपना राजनीतिक ‘गुरु’ मानते थे। आरोप है कि उन्होंने अदालत में खुले तौर पर कहा था कि वे खुद को भारतीय नागरिक नहीं मानते और न ही भारतीय संविधान को स्वीकारते हैं।
जांचकर्ताओं का कहना है कि 2008 के बाद हर अशांति के दौरान उनकी हड़ताल और बंद की अपीलें हुर्रियत के निर्देशों से मेल खाती थीं और उन्होंने हाई कोर्ट बार एसोसिएशन को एक “जागीर” की तरह चलाया, जो पूरी तरह से अलगाववादी एजेंडे के अनुरूप था।
अदालत द्वारा आरोप तय किए जाने के बाद अब क़य्यूम पर कठोर यूएपीए प्रावधानों के तहत मुकदमा चलेगा। मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने के साथ-साथ अलगाववादी नेटवर्क से जुड़ा हुआ है, जिसके चलते आने वाले महीनों में इस पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी।