त्रिपुरा हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार द्वारा अवैध आव्रजन के मुद्दे पर कोई कार्रवाई न करने के आरोप में दायर जनहित याचिका (PIL) को फिलहाल खारिज कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को यह स्वतंत्रता दी कि यदि सरकार उचित समय के भीतर कोई जवाब नहीं देती, तो वे दोबारा याचिका दायर कर सकते हैं।
यह याचिका नागरिक अधिकार संगठन के संयोजक डॉ. बिजॉय देबबर्मा और ट्विपरा स्टूडेंट्स फेडरेशन (TSF) से जुड़े छात्र कार्यकर्ता जॉन देबबर्मा द्वारा संयुक्त रूप से दाखिल की गई थी। उन्होंने 24 जून को राज्य सरकार को एक प्रतिनिधित्व सौंपा था, जिसमें हाल ही में केंद्र द्वारा अवैध आव्रजन से निपटने के लिए जारी निर्देशों पर राज्य द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी गई थी।
गृह मंत्रालय (MHA) ने मई में एक अधिसूचना जारी कर सभी राज्यों को अवैध प्रवासियों की पहचान, न्यायिक प्रक्रिया, निरोध और निर्वासन के चार-चरणीय उपाय अपनाने का निर्देश दिया था।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने माना कि याचिकाकर्ताओं को अभी राज्य सरकार की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करनी चाहिए। डिप्टी सॉलिसिटर जनरल बिद्युत मजूमदार ने कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि अदालत ने भविष्य में फिर से कानूनी कार्रवाई का रास्ता बंद नहीं किया है।
मजूमदार ने पत्रकारों से कहा, “याचिका फिलहाल खारिज कर दी गई है, लेकिन अगर सरकार जवाब नहीं देती है तो याचिकाकर्ता फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।”
राज्य में यह मुद्दा राजनीतिक रूप से भी उठा है। टिपरा मोथा पार्टी के विधायक रंजीत देबबर्मा ने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से आए अवैध प्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग की थी।
कोर्ट के इस फैसले से अब मामला राज्य सरकार के पाले में चला गया है, और अगली कानूनी कार्रवाई इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार क्या कदम उठाती है।