त्रिपुरा सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वह पुलिस महानिदेशक (DGP) की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 2006 के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन कर रही है। यह जानकारी उस जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान दी गई जो NGO MONDRA द्वारा दाखिल की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार ने डीजीपी की नियुक्ति में निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया।
मुख्य न्यायाधीश संजय खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार (2006) के ऐतिहासिक फैसले के अनुपालन की समीक्षा की। इस फैसले में पुलिस प्रशासन में कई सुधारों की सिफारिश की गई थी, जिनमें जांच और कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारियों को अलग करना और UPSC की भूमिका के तहत DGP की नियुक्ति जैसे प्रावधान शामिल हैं। इस निर्णय के अनुसार, डीजीपी की नियुक्ति सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी के कार्यकाल से पहले की जानी चाहिए और वरिष्ठता, अनुभव और योग्यता के आधार पर UPSC द्वारा चयनित तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की सूची में से की जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने पीठ को एक सीलबंद लिफाफे में एक पत्र सौंपा, जिसमें बताया गया कि 7 मार्च को नए डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि वह 2006 के दिशा-निर्देशों और बाद के निर्णयों के प्रति प्रतिबद्ध है। वर्तमान डीजीपी अमिताभ रंजन, जिन्होंने 28 जुलाई 2022 को पदभार संभाला था, 31 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

NGO MONDRA की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि राज्य सरकार ने समय पर डीजीपी चयन प्रक्रिया शुरू नहीं की, जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। इसके जवाब में राज्य ने कहा कि आवश्यक कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं और पूरी प्रक्रिया नियमानुसार चल रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत दस्तावेजों और प्रयासों को स्वीकार करते हुए याचिका पर औपचारिक नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि यदि दिशा-निर्देशों का कोई उल्लंघन पाया जाता है, तो याचिकाकर्ता मामले को फिर से जीवित कर सकते हैं।
पीठ ने कहा,
“प्रतिवादी (त्रिपुरा सरकार) के अधिवक्ता ने एक गोपनीय पत्र सौंपा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में सीलबंद लिफाफे में सुरक्षित रखा जाएगा। वर्तमान याचिका में हम कोई नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं। हालांकि, यदि कोई उल्लंघन होता है तो याचिकाकर्ता पुनरुत्थान हेतु आवेदन कर सकते हैं।”
यह फैसला संकेत देता है कि सुप्रीम कोर्ट पुलिस प्रशासन में पारदर्शिता और नियमबद्ध प्रक्रिया के अनुपालन पर सख्त नजर बनाए हुए है।