मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता ट्रिब्यूनल: सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना पीड़ित के लिए मुआवज़ा बढ़ाया

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) किसी भी वैध रूप से गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को दरकिनार नहीं कर सकता है। यह फैसला प्रकाश चंद शर्मा बनाम रामबाबू सैनी एवं अन्य केस में सुनाया गया, जिसमें याचिकाकर्ता को सड़क दुर्घटना के कारण कोमा में जाने के बाद मुआवजा राशि में बढ़ोतरी की गई।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने पीड़ित के पक्ष में फैसला सुनाते हुए राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा दिए गए ₹19.39 लाख के मुआवजे को बढ़ाकर ₹48.7 लाख कर दिया, जिस पर 7% वार्षिक ब्याज भी लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को उचित महत्व दिया जाना चाहिए और इसे ट्रिब्यूनल की व्यक्तिगत राय से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 23 मार्च 2014 को हुए एक सड़क हादसे से जुड़ा है, जब अलवर, राजस्थान में प्रकाश चंद शर्मा अपनी मोटरसाइकिल चला रहे थे और एक तेज़ रफ्तार मारुति ओमनी (RJ 02 UA 1663) ने उन्हें टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में उन्हें गंभीर सिर और पैर की चोटें आईं, जिससे वे कोमा में चले गए। इस संबंध में तेहला पुलिस स्टेशन में एफआईआर (संख्या 81/14) दर्ज की गई थी। शर्मा का पहले कट्टा अस्पताल, बांदीकुई में इलाज हुआ, फिर उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर रेफर कर दिया गया।

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उनके परिवार ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT), अलवर में क्लेम संख्या 575/2014 दायर किया, जिसके तहत उन्हें ₹16.29 लाख का मुआवजा दिया गया। इस फैसले से असंतुष्ट होकर, परिवार ने राजस्थान हाई कोर्ट, जयपुर बेंच में अपील की, जिसने मुआवजा बढ़ाकर ₹19.39 लाख कर दिया। हालांकि, हाई कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की 100% विकलांगता रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इसे 50% तक सीमित कर दिया, जिससे मुआवजा राशि काफी घट गई।

इसके बाद, शर्मा के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर विकलांगता निर्धारण को चुनौती दी और अटेंडेंट चार्ज तथा भविष्य की संभावनाओं को मुआवजे में शामिल करने की मांग की।

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मुख्य कानूनी मुद्दे

  1. लापरवाही और ज़िम्मेदारी – ट्रिब्यूनल ने माना कि दुर्घटना मारुति ओमनी चालक की लापरवाही से हुई और बीमा कंपनी को मुआवजा देना होगा।
  2. विकलांगता की सीमा – ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रमाणित 100% विकलांगता को नज़रअंदाज़ कर मनमाने ढंग से इसे 50% तक सीमित कर दिया।
  3. अटेंडेंट चार्ज और भविष्य की संभावनाएं – हाई कोर्ट ने अटेंडेंट खर्चों को मुआवजे में शामिल करने से मना कर दिया और भविष्य की संभावनाओं को भी नहीं जोड़ा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल द्वारा विशेषज्ञ मेडिकल रिपोर्ट को अनदेखा करने पर कड़ी टिप्पणी की और स्पष्ट किया कि यदि कोई मेडिकल बोर्ड विकलांगता प्रमाणित करता है, तो ट्रिब्यूनल इसे अपनी व्यक्तिगत राय से नहीं बदल सकता।

“ट्रिब्यूनल ने मेडिकल बोर्ड की योग्यता पर ही सवाल उठा दिया। यदि उसे मेडिकल सर्टिफिकेट पर संदेह था, तो उसके पास पुनर्मूल्यांकन का विकल्प था, लेकिन वह विकलांगता निर्धारण के विवरण में नहीं जा सकता था।”

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सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को बोलने, सोचने, खड़े होने और चलने की क्षमता नहीं है और उसे लगातार कैथेटर की जरूरत है। इसी को ध्यान में रखते हुए अदालत ने 100% विकलांगता को उचित माना।

बढ़ी हुई मुआवजा राशि का विवरण

मुआवजा का आधारट्रिब्यूनल का निर्णय (₹)हाई कोर्ट का निर्णय (₹)सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (₹)
भविष्य की आय हानि12,39,81012,39,81024,79,620
भविष्य की संभावनाएं (25%)3,09,9536,19,905
अटेंडेंट चार्ज7,80,000
चिकित्सा खर्च1,71,1551,71,1551,71,155
अस्पताल में भर्ती खर्च (37 दिन)18,50018,50018,500
शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा2,00,0002,00,0002,00,000
दर्द और कष्ट6,00,000
कुल मुआवजा राशि16,29,46519,39,41848,70,000

सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम राशि को ₹48.7 लाख तक गोल किया और निर्देश दिया कि इस पर 7% वार्षिक ब्याज क्लेम याचिका की तारीख से लागू होगा।

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