तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उसके हालिया आदेश में संशोधन की मांग की है, जिसमें राज्य सरकार को किसी जीवित राजनीतिक हस्ती के नाम और चित्र का उपयोग कल्याणकारी योजनाओं में करने से रोका गया था। सरकार का तर्क है कि इस आदेश के कारण जनता के लिए चल रही लाभकारी योजनाएं बाधित हो सकती हैं।
सरकार ने विशेष रूप से दो प्रमुख योजनाओं—‘उंगलोडन स्टालिन’ (आपके साथ स्टालिन) और ‘नलम काक्कुम स्टालिन’ (स्वास्थ्य के लिए स्टालिन)—को वर्तमान नामों के साथ जारी रखने की अनुमति मांगी है। याचिका में कहा गया कि मुख्यमंत्री एक संवैधानिक पद है और उसे मात्र एक राजनीतिक हस्ती मानकर ऐसे प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते।
मुख्य न्यायाधीश एम एम श्रीवत्सव और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की खंडपीठ ने सोमवार को मामले की सुनवाई की और अगली सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय की। इससे पहले 31 जुलाई को अदालत ने अंतरिम आदेश में राज्य सरकार को किसी भी जीवित व्यक्ति, पूर्व मुख्यमंत्रियों या वैचारिक नेताओं की तस्वीर या नाम, तथा राजनीतिक चिह्नों का उपयोग सरकारी विज्ञापनों या योजनाओं के नाम में करने से मना किया था। यह आदेश एआईएडीएमके सांसद सी वी शन्मुगम और अधिवक्ता इनियन द्वारा दायर याचिकाओं पर पारित किया गया था।

राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत से आदेश में स्पष्टता लाने का अनुरोध किया और बताया कि इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में कोई अपील लंबित नहीं है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता विजय नारायण ने तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय में इस मुद्दे का उल्लेख किया गया है और यह शीघ्र सूचीबद्ध होने की संभावना है। इस कानूनी उलझन को देखते हुए हाईकोर्ट ने फिलहाल फैसला टालते हुए अगली सुनवाई गुरुवार के लिए निर्धारित की।
सरकार की ओर से दायर संशोधन याचिका में कहा गया है कि अदालत का आदेश लागू होने पर उसे तत्काल प्रभाव से योजनाओं को रोकना पड़ेगा, सभी प्रचार सामग्री दोबारा छापनी पड़ेगी और व्यवस्थाओं को फिर से करना होगा, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियान पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
लोक प्रशासन सचिव रीता हरीश ठक्कर ने अदालत को बताया कि ‘नलम काक्कुम स्टालिन’ योजना, जो राज्यभर में स्वास्थ्य जांच और चिकित्सीय लाभ प्रदान करती है, को 3 जून को अधिसूचित किया गया और 2 अगस्त को औपचारिक रूप से शुरू किया गया। उन्होंने आगाह किया कि यदि आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होता है तो योजना रुक जाएगी जिससे जनस्वास्थ्य को भारी नुकसान होगा।
ठक्कर ने यह भी रेखांकित किया कि याचिकाकर्ताओं ने आखिरी समय में अदालत का रुख किया, जिससे राज्य और जनता दोनों को अनावश्यक कठिनाई हुई।
यह मामला कल्याणकारी योजनाओं में राजनीतिक प्रचार बनाम संवैधानिक मर्यादा के बीच संतुलन पर गहराते विवाद को रेखांकित करता है। अदालतें जहां सरकारी संसाधनों के राजनीतिक उपयोग को रोकना चाहती हैं, वहीं सरकारें प्रशासनिक निरंतरता और जनहित का हवाला देती हैं।
अब यह निर्णय मद्रास हाईकोर्ट के हाथ में है कि क्या ये योजनाएं वर्तमान नामों के साथ जारी रह सकती हैं। अदालत इस पर अगली सुनवाई 7 अगस्त को करेगी।