बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को ठाणे क्रीक वन्यजीव अभयारण्य में संरक्षण प्रयासों की निगरानी के लिए एक समर्पित समिति के गठन की आवश्यकता पर बल दिया। यह अभयारण्य महाराष्ट्र के तीन रामसर मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि स्थलों में से एक है और फ्लेमिंगो पक्षियों का महत्वपूर्ण आवास स्थल है।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति मकरंद कर्णिक की खंडपीठ ने यह टिप्पणी राज्य के रामसर स्थलों—ठाणे क्रीक, नांदूर मध्यमेश्वर वन्यजीव अभयारण्य और लोणार झील—के संरक्षण की निगरानी के लिए शुरू की गई एक स्वत: संज्ञान कार्यवाही की सुनवाई के दौरान की। यह कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिसंबर 2024 में देश के 85 रामसर स्थलों की निगरानी के निर्देश के बाद शुरू हुई थी।
सीनियर एडवोकेट जनक द्वारकादास, जिन्हें न्यायालय द्वारा एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया है, ने ठाणे क्रीक की दीर्घकालिक पारिस्थितिकीय सुरक्षा के लिए लक्षित संरक्षण उपायों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “इन लक्षित कदमों को लागू करके ठाणे क्रीक की पारिस्थितिकीय अखंडता को संरक्षित किया जा सकता है, साथ ही औद्योगिक और शहरी विकास के साथ सतत सहअस्तित्व सुनिश्चित किया जा सकता है।”
द्वारकादास ने संरक्षण के रोडमैप में शामिल करने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें न्यायालय के समक्ष रखीं:
- इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) का विस्तार: सभी मैंग्रोव क्षेत्रों और आर्द्रभूमियों को ESZ में तत्काल शामिल किया जाए, ताकि प्रवासी पक्षियों के विश्राम और आहार स्थलों की रक्षा हो सके।
- मत्स्य पालन तालाबों पर प्रतिबंध: कृत्रिम मत्स्य पालन तालाबों पर रोक लगाई जाए ताकि प्राकृतिक आवासों का विनाश रोका जा सके और पारिस्थितिक संतुलन बना रहे।
- कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था का नियमन: रात्रीचर जैव विविधता को प्रभावित न करने के लिए प्रकाश व्यवस्था को नियंत्रित किया जाए।
- ड्रोन और नीची उड़ान भरने वाले विमानों पर प्रतिबंध: प्रवासी पक्षियों की शांति भंग न हो, इसके लिए ड्रोन और निजी हेलीकॉप्टर सेवाओं पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए।
- आवारा कुत्तों पर नियंत्रण: नसबंदी अभियान और नियमित कचरा सफाई के माध्यम से आवारा कुत्तों की समस्या को नियंत्रित किया जाए ताकि फ्लेमिंगो और अन्य पक्षियों पर हमले रोके जा सकें।
- अवैध रेत खनन पर सख्ती: ठाणे क्रीक की नाज़ुक पारिस्थितिकी को बचाने के लिए अवैध रेत खनन पर कठोर कार्रवाई की जाए।
इस पहल का समर्थन करते हुए महाराष्ट्र राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण की ओर से पेश अधिवक्ता मनीष केलकर ने अदालत को बताया कि महाराष्ट्र देश में सबसे अधिक आर्द्रभूमियों वाला राज्य है। उन्होंने कहा, “हमने आर्द्रभूमियों का नक्शांकन बड़े पैमाने पर पूरा कर लिया है, लेकिन संरक्षण यहीं समाप्त नहीं होता। हम महाराष्ट्र की आर्द्रभूमियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
कोर्ट ने इन सिफारिशों पर संज्ञान लिया और संकेत दिया कि इन उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने और निगरानी के लिए एक समर्पित समिति का गठन लाभकारी हो सकता है।