​सुनवाई के बिना सेवा समाप्ति प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अस्थायी स्वास्थ्यकर्मी की बर्खास्तगी रद्द की​

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को सुदृढ़ करते हुए, अस्थायी स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी जयंत कुमार सिंह की सेवा समाप्ति को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने पाया कि 14 फरवरी 2025 को मुख्य चिकित्सा अधिकारी, सीतापुर द्वारा पारित सेवा समाप्ति आदेश कलंककारी था और बिना किसी सुनवाई के जारी किया गया था, जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।​

पृष्ठभूमि

जयंत कुमार सिंह उत्तर प्रदेश सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में अस्थायी रूप से नियुक्त थे। उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित था, जिसके आधार पर उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह तर्क दिया कि केवल एफआईआर के आधार पर उन्हें दंडित किया गया, जबकि न तो कोई विभागीय जांच हुई और न ही उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया।​

याचिकाकर्ता के तर्क

याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Basudeo Tiwary बनाम Sido Kanhu University [(1998) 8 SCC 194] का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि किसी भी सेवा समाप्ति में गैर-मनमानी और सुनवाई का अधिकार आवश्यक है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आदेश कलंककारी था और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।​

इसके अतिरिक्त, Nar Singh Pal बनाम Union of India [(2000) 3 SCC 588] और Shasya Singh बनाम State of U.P. [2020 SCC OnLine All 106] के मामलों का भी उल्लेख किया गया, जिनमें कहा गया है कि अस्थायी कर्मचारी भी संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत अधिकार प्राप्त करते हैं और सेवा समाप्ति से पहले वैध जांच आवश्यक है।​

प्रतिवादियों के तर्क

राज्य और मुख्य चिकित्सा अधिकारी के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता एक अप्रशिक्षित अस्थायी नियुक्ति थे, और उनके नियुक्ति पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि किसी भी शिकायत या अनियमितता पर सेवा समाप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि लंबित एफआईआर को ऐसी अनियमितता माना गया, जो सेवा समाप्ति को उचित ठहराती है।​

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हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि अस्थायी कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए कोई विशिष्ट सेवा नियम नहीं हैं और न ही कोई नियम जांच की आवश्यकता को अनिवार्य करते हैं।​

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने देखा कि सेवा समाप्ति आदेश, भले ही अस्थायी कर्मचारी के खिलाफ था, कलंककारी प्रकृति का था और नैतिक पतन के आरोपों पर आधारित था। ऐसे मामलों में, न्यायालय ने कहा:​

“14.02.2025 का विवादित आदेश अवैध, मनमाना और अनुचित है क्योंकि यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन करते हुए और बिना किसी जांच के पारित किया गया है।”​

न्यायालय ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता 10.01.2025 से 17.01.2025 तक न्यायिक हिरासत में थे, जो स्वयं में उचित प्रक्रिया के बिना सेवा समाप्ति को उचित नहीं ठहराता। न्यायाधीश ने कहा कि यदि आवश्यक समझा जाता, तो उचित प्रक्रिया यह होती कि याचिकाकर्ता को जांच लंबित रहने तक निलंबित किया जाता, न कि सीधे सेवा समाप्त की जाती।​

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निर्णय

हाईकोर्ट ने 14.02.2025 के सेवा समाप्ति आदेश को प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर रद्द कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सक्षम प्राधिकारी कानून के अनुसार पुनः कार्यवाही कर सकते हैं, बशर्ते याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाए।​

याचिका को स्वीकार कर लिया गया और संबंधित आदेशों को कानून के अनुसार पारित करने का निर्देश दिया गया। कोई लागत नहीं दी गई।​

मामला: जयंत कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, रिट-ए संख्या 4208/2025

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