तेलंगाना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्वतः या यांत्रिक तरीके से की गई गिरफ्तारी अस्वीकार्य है और आपराधिक प्रक्रिया के प्रयोग में अनुपातिकता के सिद्धांत का पालन अनिवार्य है।
बुधवार को न्यायमूर्ति तुकारमजी ने बीआरएस सोशल मीडिया कार्यकर्ता नल्ला बालू @ दुर्गम शशिधर गौड़ के खिलाफ दर्ज तीन एफआईआर को रद्द करते हुए राज्य पुलिस को निर्देश दिया कि वे गिरफ्तारी से संबंधित उन दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करें जो पूर्व के न्यायिक निर्णयों में निर्धारित किए गए हैं।
तेलंगाना पुलिस ने गौड़ के खिलाफ तीन अलग-अलग थानों में मामले दर्ज किए थे। आरोप था कि उन्होंने मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ आपत्तिजनक संदेश सोशल मीडिया पर पोस्ट किए। एक एफआईआर में आरोप लगाया गया कि उनकी पोस्ट से सार्वजनिक अशांति फैलाने, मुख्यमंत्री को बदनाम करने और शांति भंग करने की मंशा थी।

अपने आदेश में न्यायमूर्ति तुकारमजी ने कहा कि केवल आक्रामक या आलोचनात्मक सामग्री का प्रकाशन, बिना यह साबित किए कि उसका उद्देश्य निषिद्ध परिणाम उत्पन्न करना था, आपराधिक मुकदमे को सही ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।
आदेश में कहा गया—
“ऐसे कृत्य जो जानबूझकर अपमान की श्रेणी में आते हैं और जिनसे शांति भंग हो सकती है, या ऑनलाइन शरारत जो वैमनस्य या हिंसा को बढ़ावा देने हेतु की गई हो, तथा यदि मानहानिकारक कथन विधिसम्मत रूप से स्थापित हों, तो अभियोजन को जारी रखना उचित होगा। लेकिन यदि अपराध के सांविधिक तत्व अनुपस्थित हैं तो मात्र राजनीतिक आलोचना, चाहे कितनी भी तीखी हो, दंडात्मक कार्रवाई का आधार नहीं बन सकती।”
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि विवादित पोस्ट केवल राजनीतिक विचार थे जो सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत किए गए।