एर्नाकुलम, 10 मार्च 2025 – केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह निर्णय दिया कि किसी भी शिक्षक के खिलाफ किसी शैक्षिक संस्थान में उनकी गतिविधियों के संबंध में आपराधिक मामला दर्ज करने से पहले एक प्राथमिक जांच आवश्यक होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने एक छात्र पर हमला करने के आरोपी एक स्कूल शिक्षक को जमानत देते समय पारित किया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह जमानत याचिका (बी.ए. नं. 2937/2025) तिरुवनंतपुरम के 36 वर्षीय शिक्षक सिबिन एस.वी. द्वारा दायर की गई थी, जिनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 118(1) और किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जे.जे. एक्ट) की धारा 75 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अभियोजन के अनुसार, 10 फरवरी 2025 को दोपहर लगभग 12:30 बजे, शिक्षक ने छठी कक्षा के एक छात्र को बेंत से पीटा था। आरोप यह था कि यह हमला निजी रंजिश के कारण किया गया, क्योंकि छात्र ने शिक्षक के बारे में अफवाह फैलाई थी कि वे एक दुर्घटना के लिए जिम्मेदार थे, जिसमें उनके बेटे की मृत्यु हो गई थी। इस शिकायत को छात्र के माता-पिता ने दर्ज कराया, जिसके बाद शिक्षक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया।

मुख्य कानूनी प्रश्न
- क्या शिक्षकों के खिलाफ प्राथमिक जांच के बिना आपराधिक मामले शुरू किए जा सकते हैं?
- शैक्षिक संस्थानों में अनुशासन बनाए रखने के लिए उचित कार्रवाई की सीमा क्या है?
- छात्रों के अधिकारों की रक्षा और स्कूलों में अनुशासन बनाए रखने के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए?
- शिक्षकों जैसे पेशेवरों को बीएनएस की धारा 173(3) के तहत कितना संरक्षण प्राप्त है?
कोर्ट की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए बिना जांच के आपराधिक मामलों को दर्ज करने के दुष्परिणामों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा:
“शिक्षक हमारे समाज के अनदेखे नायक हैं। वे आने वाली पीढ़ियों के मस्तिष्क, हृदय और आत्मा को आकार देते हैं। उनके मनोबल को गिराने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिए, क्योंकि वे हमारे भविष्य की रीढ़ हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि शिक्षकों के खिलाफ बिना उचित सत्यापन के आपराधिक मामले दर्ज करने से शिक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस फैसले में राजन @ राजू बनाम पुलिस उपनिरीक्षक (2018) और गीता मनोहरन बनाम केरल राज्य (2020) जैसे पूर्व के निर्णयों का भी उल्लेख किया गया, जिनमें शिक्षकों को छात्रों को अनुशासित करने का अंतर्निहित अधिकार दिया गया था।
न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने कहा:
“पुराने समय में केवल शिक्षक की उपस्थिति से ही अनुशासन स्थापित हो जाता था। लेकिन आज शिक्षक लगातार आपराधिक मामलों के खतरे में काम कर रहे हैं, जो शिक्षा के भविष्य के लिए खतरनाक है।”
कोर्ट ने यह भी माना कि छात्र दुर्व्यवहार, नशीली दवाओं के सेवन और हिंसा जैसी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इस संदर्भ में, शिक्षकों को अनुशासन बनाए रखने के लिए स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।
कोर्ट का निर्णय
केरल हाईकोर्ट ने सिबिन एस.वी. को जमानत दे दी, यह देखते हुए कि बीएनएस के तहत आरोपित अपराध की अधिकतम सजा तीन वर्ष और जे.जे. एक्ट के तहत पांच वर्ष है, जिससे यह मामला जमानत के लिए उपयुक्त बनता है। अदालत ने निम्नलिखित शर्तें लागू कीं:
- याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर जांच अधिकारी के समक्ष पेश होना होगा।
- यदि पूछताछ के बाद पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने का निर्णय लेती है, तो उन्हें ₹50,000 के जमानती बॉन्ड और दो सॉल्वेंट जमानतदारों के साथ रिहा किया जाएगा।
- याचिकाकर्ता गवाहों को प्रभावित नहीं करेगा और जांच में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
शिक्षकों के लिए अनिवार्य प्राथमिक जांच
इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू केरल राज्य पुलिस प्रमुख को निर्देश देना था कि वे शिक्षकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच को अनिवार्य बनाने के लिए एक परिपत्र जारी करें। अदालत ने बीएनएस की धारा 173(3) का हवाला दिया, जो तीन से सात वर्षों की सजा वाले अपराधों में प्राथमिक जांच की अनुमति देती है।
फैसले में कहा गया:
“यदि किसी शिक्षक के खिलाफ कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो पुलिस अधिकारियों को 14 दिनों के भीतर प्राथमिक जांच करनी होगी। इस अवधि के दौरान, शिक्षक को तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा जब तक कि प्रथम दृष्टया मामला स्थापित न हो जाए।”
इसके अलावा, अदालत ने यह भी माना कि शिक्षकों को सद्भावना में की गई अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के लिए आपराधिक मुकदमों का सामना नहीं करना चाहिए। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि स्कूलों में बेंत रखना, भले ही उसका उपयोग न किया जाए, अनुशासन बनाए रखने के लिए एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल सकता है।
कानूनी समुदाय की प्रतिक्रिया
याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता एम.आर. सारिन ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह शिक्षकों को झूठे आरोपों से बचाने में सहायक होगा। उन्होंने कहा कि यह फैसला शिक्षकों की गरिमा को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वहीं, राज्य की ओर से पैरवी कर रहे लोक अभियोजक नौशाद के.ए. ने जमानत याचिका का विरोध किया और तर्क दिया कि यह अपराध गंभीर है और इसके लिए सख्त कार्रवाई आवश्यक है।
यह निर्णय शिक्षकों को मनमाने ढंग से दर्ज किए गए आपराधिक मामलों से बचाने की एक मिसाल कायम करता है, जबकि यह भी सुनिश्चित करता है कि अनुचित आचरण की वास्तविक शिकायतों की पूरी जांच हो। केरल हाईकोर्ट के इस निर्देश से शिक्षकों और छात्रों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी। राज्य पुलिस प्रमुख को एक महीने के भीतर इस आदेश को लागू करने का निर्देश दिया गया है, जिससे ऐसे मामलों के निपटान में एकरूपता सुनिश्चित हो सके।
इस फैसले का शिक्षा क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है और यह भारत के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह के निर्णयों को प्रभावित कर सकता है।