सुप्रीम कोर्ट: एनजीटी एक्ट की धारा 16(h) के तहत अपील की समय सीमा किसी भी जिम्मेदार प्राधिकरण द्वारा ‘कम्यूनिकेशन’ की पहली तारीख से शुरू होगी; देरी के आधार पर अपील खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट, 2010 (NGT Act) की धारा 16(h) के तहत पर्यावरण मंजूरी (Environmental Clearance – EC) के खिलाफ अपील दायर करने की समय सीमा (Limitation Period) उस ‘सबसे पहली तारीख’ से शुरू मानी जाएगी, जिस दिन किसी भी जिम्मेदार प्राधिकरण (Duty Bearer) द्वारा आदेश को ‘कम्यूनिकेट’ (सूचित/सार्वजनिक) किया गया हो।

जस्टिस पमिडिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने टल्ली ग्राम पंचायत द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), पुणे बेंच के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें अपील को समय-बाधित (Time-Barred) मानते हुए खारिज कर दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि (Background)

यह मामला गुजरात के टल्ली और बंबोर गांवों में 193.3269 हेक्टेयर क्षेत्र में चूना पत्थर खनन के लिए प्रतिवादी संख्या 4 (प्रोजेक्ट प्र proponent) को दी गई पर्यावरण मंजूरी से संबंधित है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने 5 जनवरी 2017 को इस परियोजना के लिए EC प्रदान की थी।

अपीलकर्ता, टल्ली ग्राम पंचायत ने इस EC को एनजीटी के समक्ष चुनौती दी थी। चूंकि अपील वैधानिक अवधि के बाद दायर की गई थी, इसलिए इसके साथ देरी को माफ करने के लिए एक आवेदन (Condonation of Delay) भी लगाया गया था। पंचायत का तर्क था कि उन्हें EC की जानकारी 14 फरवरी 2017 को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत मिले जवाब के माध्यम से हुई। इसलिए, उनका कहना था कि समय सीमा की गणना उस तारीख से या अधिकारियों से प्राप्त अंतिम संचार से की जानी चाहिए।

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एनजीटी ने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी थी कि इसे अधिकतम 90 दिनों की क्षमा योग्य अवधि के बाद दायर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 जुलाई 2022 को मामले को फिर से विचार के लिए एनजीटी के पास भेजने (Remand) के बाद, ट्रिब्यूनल ने फिर से देरी माफी के आवेदन को खारिज कर दिया। इसके बाद यह मामला सिविल अपील संख्या 731/2023 के रूप में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

पक्षकारों की दलीलें और कानूनी मुद्दे

अदालत के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह तय करना था कि एनजीटी एक्ट की धारा 16(h) के तहत समय सीमा की गणना करने के उद्देश्य से, किस तारीख को EC का आदेश किसी “व्यथित व्यक्ति” (Aggrieved Person) को “कम्यूनिकेट” हुआ माना जाएगा।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि समय सीमा की गणना RTI जवाब के माध्यम से जानकारी मिलने की तारीख से होनी चाहिए। इसके अलावा, यह भी दलील दी गई कि प्रोजेक्ट प्र proponent ने ‘पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006’ (EIA Notification) के क्लॉज 10 के अनुसार दो स्थानीय समाचार पत्रों में EC के पूरे आदेश को प्रकाशित नहीं किया था, इसलिए उन्होंने ‘कम्यूनिकेशन’ के अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया।

कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 16(h) का विश्लेषण किया, जो एक व्यथित व्यक्ति को आदेश के “कम्यूनिकेट” होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर अपील करने की अनुमति देती है, जिसे पर्याप्त कारण होने पर ट्रिब्यूनल द्वारा 60 दिनों तक और बढ़ाया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि EC के आदेश को सूचित करने का दायित्व “कई जिम्मेदार प्राधिकरणों” (Plurality of duty bearers) पर होता है, जिनमें शामिल हैं:

  1. MoEF&CC (मंत्रालय)
  2. प्रोजेक्ट प्र proponent
  3. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
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कोर्ट ने माना कि चूंकि ये कर्तव्य अलग-अलग प्राधिकरणों द्वारा निभाए जाते हैं, इसलिए उनके अनुपालन की तारीखें अलग-अलग हो सकती हैं। ‘प्रथम प्रोद्भूत’ (First Accrual) के सिद्धांत को लागू करते हुए, कोर्ट ने कहा:

“जब निर्णय को सूचित करने का दायित्व कई प्राधिकरणों में निहित होता है, तो यह अनुमान लगाना उचित है कि ‘कम्यूनिकेशन’ तब पूर्ण माना जाएगा जब ‘व्यथित व्यक्ति’ को संचार के सबसे पहले माध्यम से जानकारी प्राप्त होती है।”

खत्री होटेल्स (प्रा.) लिमिटेड बनाम भारत संघ (2011) के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि जब कोई मुकदमा कई कारणों पर आधारित होता है, तो समय सीमा उस दिन से शुरू होती है जब मुकदमा करने का अधिकार पहली बार उत्पन्न होता है।

कोर्ट ने सेव मोन रीजन फेडरेशन (2013) और मेधा पाटकर (2013) के मामलों में ट्रिब्यूनल के पिछले फैसलों की पुष्टि करते हुए कहा:

“धारा 16(h) की हमारी व्याख्या और ट्रिब्यूनल के निरंतर निर्णयों को देखते हुए, हमारा मत है कि समय सीमा उस सबसे शुरुआती तारीख से शुरू होगी जिस दिन किसी भी जिम्मेदार प्राधिकरण द्वारा संचार (Communication) किया गया है।”

समाचार पत्र प्रकाशन पर स्पष्टीकरण

अपीलकर्ता की इस दलील पर कि समाचार पत्रों के विज्ञापनों में पूरा आदेश नहीं था, कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने EIA अधिसूचना के क्लॉज 10 की ऐसी व्याख्या को “रुढ़िवादी” (Pedantic) करार दिया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया:

“यह पर्याप्त अनुपालन होगा यदि प्रोजेक्ट प्र proponent EC मिलने की जानकारी प्रकाशित करता है और उसमें शर्तों और सुरक्षा उपायों के सार को इंगित करता है। हालांकि EC मिलने की जानकारी प्रकाशित करना प्रोजेक्ट प्र proponent की जिम्मेदारी है, लेकिन कानूनी रूप से यह आवश्यक नहीं है कि पर्यावरण मंजूरी का पूरा आदेश समाचार पत्र में छापा जाए।”

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निर्णय (Decision)

तथ्यों की जांच करते हुए, कोर्ट ने पाया कि 5 जनवरी 2017 को दी गई EC उसी दिन MoEF&CC की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई थी। इसके अलावा, प्रोजेक्ट प्र proponent ने 9 जनवरी 2017 को पंचायत को प्रतियां सौंपी थीं और 11 जनवरी 2017 को स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“एनजीटी के इस निष्कर्ष को देखते हुए कि EC 05.01.2017 को अपलोड की गई थी और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थी, 30 दिनों की समय सीमा उसी तारीख से शुरू होगी। यदि ऐसा है, तो जब तक अपीलकर्ता ने 19.04.2017 को अपनी अपील दायर की, तब तक 90 दिनों की अधिकतम अवधि समाप्त हो चुकी थी।”

नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने समय सीमा (Limitation) के आधार पर अपील खारिज करने के एनजीटी के फैसले को सही ठहराया और सिविल अपील संख्या 731/2023 को खारिज कर दिया। पक्षकारों को अपना-अपना खर्चा उठाने का निर्देश दिया गया।

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