पति की तलाक याचिका में पत्नी द्वारा काउंटर-क्लेम के बिना व्यभिचार का अतिरिक्त मुद्दा नहीं बनाया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि पति द्वारा दायर तलाक की याचिका में उसके स्वयं के कथित व्यभिचार पर कोई अतिरिक्त मुद्दा नहीं बनाया जा सकता, खासकर तब जब पत्नी ने इस आधार पर तलाक के लिए कोई काउंटर-क्लेम (जवाबी दावा) दायर न किया हो। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सैयद क़मर हसन रिज़वी की खंडपीठ ने एक पत्नी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने एक पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने इस तरह का अतिरिक्त मुद्दा बनाने की उसकी अर्जी को खारिज कर दिया था।

यह अपील परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19(1) के तहत दायर की गई थी, जिसमें लखनऊ के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय-8 के 7 जुलाई, 2025 के आदेश को चुनौती दी गई थी। परिवार न्यायालय ने पति द्वारा दायर तलाक याचिका में पत्नी की ओर से सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XIV नियम 1-5 के तहत दायर आवेदन को खारिज कर दिया था।

मामले की पृष्ठभूमि

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यह कानूनी विवाद 19 मई, 2015 को शुरू हुआ जब प्रतिवादी-पति ने अपीलकर्ता-पत्नी के खिलाफ हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका दायर की। बाद में, पति ने अपनी याचिका में संशोधन करके यह आरोप शामिल किया कि उनकी पत्नी एक तीसरे पक्ष के साथ व्यभिचार में रह रही थीं, जिन्हें बाद में मामले में पक्षकार के रूप में शामिल किया गया।

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इस तीसरे पक्ष ने 5 दिसंबर, 2015 को अपनी आपत्तियों में इन आरोपों से इनकार किया और दावा किया कि पति स्वयं एक अन्य महिला के साथ व्यभिचार के संबंध में थे। उन्होंने यह कहते हुए कार्यवाही से अपना नाम हटाने का अनुरोध किया कि उन्हें अनावश्यक रूप से दंपति के विवाद में घसीटा गया है। इसके बाद, ट्रायल कोर्ट ने 31 अगस्त, 2016 और 26 नवंबर, 2016 के आदेशों के माध्यम से तीसरे पक्ष का नाम हटाने का निर्देश दिया। हालांकि, बाद में 13 अगस्त, 2024 को पति के एक आवेदन पर उन्हें फिर से पक्षकार बना लिया गया।

पारिवारिक न्यायालय ने 3 जनवरी, 2017 को क्रूरता और पत्नी के कथित व्यभिचार पर मुकदमे के लिए मुद्दे तय किए। आठ साल बाद, जब सबूतों का चरण पूरा हो चुका था, पत्नी ने 14 मई, 2025 को एक आवेदन दायर कर अपने पति के कथित व्यभिचार के संबंध में एक अतिरिक्त मुद्दा बनाने का अनुरोध किया, जो तीसरे पक्ष द्वारा उनकी 2015 की आपत्ति में किए गए कथनों पर आधारित था। परिवार न्यायालय ने 7 जुलाई, 2025 को इस आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद यह अपील दायर की गई।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ता-पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि परिवार न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज किया जो तीसरे पक्ष की आपत्तियों से सामने आया था। उन्होंने तर्क दिया कि जो व्यक्ति स्वयं व्यभिचार में लिप्त हो, वह अपनी पत्नी के खिलाफ उसी आधार पर तलाक नहीं मांग सकता। यह भी कहा गया कि पति के कथित व्यभिचार पर एक अतिरिक्त मुद्दा न बनाने से अपीलकर्ता को “गंभीर पूर्वाग्रह” होगा और यह मामला “मामले की जड़” तक जाता है।

इसके विपरीत, प्रतिवादी-पति के वकील ने तर्क दिया कि पत्नी का आवेदन केवल “देरी की रणनीति” थी क्योंकि तलाक का मामला 2015 से लंबित था। उन्होंने बताया कि मुद्दे 2017 में पत्नी की बिना किसी आपत्ति के तय किए गए थे और उनका आवेदन सबूत का चरण समाप्त होने के बाद ही आया। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी तीसरे पक्ष की दलीलों के आधार पर अतिरिक्त मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है, और महत्वपूर्ण रूप से, पत्नी ने कभी भी अपने पति के खिलाफ व्यभिचार का आरोप लगाते हुए तलाक के लिए काउंटर-क्लेम दायर नहीं किया था।

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न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में, सीपीसी के आदेश XIV के प्रावधानों का विश्लेषण किया, जो मुद्दों के निर्धारण को नियंत्रित करता है। न्यायालय ने कहा कि मुद्दे तब उत्पन्न होते हैं जब किसी भौतिक तथ्य या कानून के प्रस्ताव को एक पक्ष द्वारा पुष्टि की जाती है और दूसरे द्वारा इनकार किया जाता है।

पीठ ने माना कि पति का एक अन्य महिला के साथ कथित संबंध उसके द्वारा दायर तलाक की याचिका का विषय नहीं था। फैसले में पत्नी द्वारा काउंटर-क्लेम के अभाव पर जोर दिया गया। न्यायालय ने पाया कि जबकि पत्नी ने यह आरोप लगाकर व्यभिचार के आधार पर तलाक लेने के पति के अधिकार पर विवाद किया था कि वह भी व्यभिचारी था, यह उसके लिए विवाह-विच्छेद की मांग करने का एक आधार हो सकता था। हालांकि, न्यायालय ने कहा, “वर्तमान मामले में, उसने न तो तलाक के लिए कोई याचिका दायर की है और न ही इस आशय का कोई काउंटर-क्लेम दायर किया है। इसके बजाय, उसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत एक कार्यवाही शुरू की है जो परिवार न्यायालय, लखनऊ के समक्ष लंबित है।”

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि चूंकि पति का कथित व्यभिचार उसके द्वारा शुरू की गई लंबित तलाक की कार्यवाही में न्यायनिर्णयन का मुद्दा नहीं था, इसलिए परिवार न्यायालय द्वारा पत्नी के आवेदन को अस्वीकार करना सही था। फैसले में कहा गया, “जब पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत मामला स्थापित किया गया है, जिसमें पत्नी के खिलाफ व्यभिचार का आरोप लगाया गया है, तो इस मामले में पति के खिलाफ व्यभिचार के आरोप का निर्धारण कोई मायने नहीं रखेगा।”

हस्तक्षेप का कोई कारण न पाते हुए, हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश की पुष्टि की और अपील खारिज कर दी।

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