सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने संबंधी संवैधानिक संशोधन के लागू होने में देरी को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कांग्रेस नेता जया ठाकुर की जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया। ठाकुर ने दलील दी कि महिलाओं को आरक्षण देने के लिए परिसीमन (delimitation) प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार करना आवश्यक नहीं है और इसे तुरंत लागू किया जा सकता है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका किसी कानून को लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि यह संसद और कार्यपालिका का कार्यक्षेत्र है। अदालत ने कहा, “कानून का प्रवर्तन संसद और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। हम उस पर आदेश नहीं दे सकते, लेकिन हम यह अवश्य पूछ सकते हैं कि सरकार परिसीमन कब करने का प्रस्ताव रखती है।”
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने टिप्पणी की कि महिलाएं देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक हैं। उन्होंने कहा, “कुल जनसंख्या का लगभग 48.4 प्रतिशत महिलाएं हैं। बिना आरक्षण के भी उन्हें टिकट क्यों नहीं दिए जा सकते? संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व घट रहा है। 33% तो दूर, यह 10% से भी कम है।”
वर्तमान में 543 सदस्यीय लोकसभा में केवल 75 महिलाएं हैं, जबकि 250 सदस्यीय राज्यसभा में 42 महिला सदस्य हैं।जया ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा कि महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से पारित 2023 के संवैधानिक संशोधन को परिसीमन की अनिश्चित प्रक्रिया से जोड़ देना उसके मूल उद्देश्य को विफल करता है।
सीनियर अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने अदालत में दलील दी, “पहला महिला आरक्षण विधेयक 1987 में संसद में आया था। इतने वर्षों के बाद इसे लागू करने में अब देरी क्यों? आरक्षण देने और परिसीमन कराने के बीच कोई संबंध नहीं है।”
याचिका में यह भी कहा गया कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए संसद और विधानसभाओं में आरक्षण बढ़ाते समय कभी जनगणना या परिसीमन की शर्त नहीं लगाई गई। “इस शर्त को जोड़कर महिलाओं के लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के उद्देश्य को कमजोर किया जा रहा है,” याचिका में कहा गया।
अदालत ने महिला आरक्षण को “राजनीतिक न्याय” की दिशा में एक कदम बताया। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “संभव है कि सरकार यह जानना चाहती हो कि किन निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित किया जाए और यह कैसे किया जाए। वे संसद की सीटों की संख्या बढ़ाना भी चाहते हैं, इसलिए उन्हें वैज्ञानिक आंकड़े चाहिए। याद रखिए, यह कानून संसद के विशेष सत्र में पारित हुआ था।”
पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे की आगे जांच करेगी और केंद्र सरकार को याचिका की प्रति देने की अनुमति दी, हालांकि सुनवाई की अगली तारीख निर्धारित नहीं की गई।
संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम, 2023 संसद के विशेष सत्र में पारित हुआ था। यह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान करता है। हालांकि, इसमें यह भी उल्लेख है कि आरक्षण तभी लागू होगा जब अगली जनगणना के बाद परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी—जिससे इसके कार्यान्वयन में अनिश्चित विलंब की आशंका जताई जा रही है।




