सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के तहत ‘यूज़र वक्फ’ (Waqf by user) की परंपरा को खत्म करने को लेकर गंभीर चिंता जताई और कहा कि इस व्यवस्था को खत्म करना “बड़े परिणाम” ला सकता है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन शामिल हैं, ने केंद्र सरकार से इस पर स्पष्टता मांगी।
यह टिप्पणी उस समय आई जब पीठ वक्फ संशोधन अधिनियम की विभिन्न धाराओं को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने फिलहाल कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया है और सुनवाई गुरुवार को जारी रहेगी।
मुख्य मुद्दा: ‘यूज़र वक्फ’ को खत्म करना
पीठ ने विशेष रूप से उस प्रावधान पर ध्यान केंद्रित किया जो बिना लिखित दस्तावेज़ों के केवल धार्मिक या परोपकारी इस्लामी उपयोग के आधार पर वर्षों से वक्फ मानी जा रही संपत्तियों को अमान्य ठहराता है।
मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा,
“आपने अब तक इसका जवाब नहीं दिया कि क्या ‘यूज़र वक्फ’ घोषित होगी या नहीं? अगर नहीं होगी, तो आप एक स्थापित चीज़ को खत्म कर रहे हैं। वक्फ बाय यूज़र के मामले में रजिस्ट्रेशन कैसे करेंगे?”
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी इंगित किया कि 14वीं से 16वीं सदी के बीच बनी अनेक मस्जिदों के पास कोई पंजीकृत विक्रय विलेख (sale deed) नहीं होगा और उन्हें केवल ऐतिहासिक धार्मिक उपयोग के आधार पर पहचाना जा सकता है। उन्होंने कहा,
“ऐसे मामलों में दस्तावेज़ मांगना असंभव होगा।”
संशोधित कानून की मुख्य आपत्तियाँ
नए अधिनियम की एक महत्वपूर्ण धारा के अनुसार, यदि किसी संपत्ति को लेकर जिलाधिकारी जांच कर रहे हैं कि वह सरकारी है या नहीं, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा। इस पर पीठ ने सवाल उठाते हुए कहा,
“ऐसे प्रावधान को लागू नहीं किया जा सकता।”
सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि यह प्रावधान वक्फ संपत्ति के उपयोग को समाप्त नहीं करता, बल्कि केवल वक्फ से जुड़ी सुविधाओं को रोकता है जब तक कि जांच पूरी न हो जाए। उन्होंने कहा,
“वहाँ दुकान है, मस्जिद है। कानून यह नहीं कहता कि उसका उपयोग बंद हो जाएगा। यह कहता है कि जब तक निर्णय नहीं होता, लाभ नहीं मिलेगा।”
इस पर सीजेआई खन्ना ने पलटकर पूछा,
“फिर किराया कहां जाएगा? उस प्रावधान का क्या उद्देश्य है?”
वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों पर भी सवाल
पीठ ने केंद्र और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए। मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा,
“क्या आप अब हिंदू एंडोमेंट बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल करने की अनुमति देंगे? साफ-साफ कहिए, क्या आप मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में सदस्य बनाएंगे?”
हालांकि कई याचिकाकर्ताओं ने विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों की आपत्तियों को देखते हुए कोई राहत नहीं दी। अगली सुनवाई गुरुवार को होगी।