सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई कर्मचारी इस्तीफा देता है, तो वह बाद में स्वयं को स्वैच्छिक सेवानिवृत्त मानकर पेंशन का दावा नहीं कर सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस्तीफा और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, दोनों सेवाकाल समाप्त करने के तरीके हैं, लेकिन उनके परिणाम पूरी तरह भिन्न होते हैं, और उन्हें परस्पर बदला नहीं जा सकता।
यह निर्णय यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (अब पंजाब नेशनल बैंक) बनाम स्वप्न कुमार मलिक मामले में दिया गया। मलिक ने 2006 में मानसिक अवसाद के कारण इस्तीफा दे दिया था, लेकिन 2010 की एक सर्कुलर के तहत पेंशन योजना का लाभ लेने का प्रयास किया।
मामले की पृष्ठभूमि

स्वप्न कुमार मलिक ने 1970 में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी शुरू की थी। उन्होंने अगस्त 2006 में इस्तीफा दिया, जिसे बैंक ने स्वीकार कर उन्हें सेवा से मुक्त कर दिया। 2010 में बैंक की ओर से एक सर्कुलर जारी हुआ, जिसमें कुछ पूर्व कर्मचारियों को पेंशन योजना में दोबारा शामिल होने का विकल्प दिया गया। मलिक ने इसके लिए आवेदन किया, परंतु बैंक ने यह कहते हुए उसे अस्वीकार कर दिया कि उन्होंने इस्तीफा दिया है, जो पेंशन के अयोग्य बनाता है।
कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मलिक के पक्ष में फैसला देते हुए आदेश दिया कि उन्हें पेंशन का लाभ दिया जाए। हालांकि डिवीजन बेंच ने यह आदेश रद्द कर दिया और बैंक को निर्देश दिया कि वह नियम 22 में संशोधन पर विचार करे और मलिक के मामले की दोबारा समीक्षा करे। दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा:
“इसलिए, वैचारिक रूप से ‘इस्तीफा’ और ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ भिन्न हैं। जो कर्मचारी इस्तीफा देते हैं और जो कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्त होते हैं, वे दो अलग-अलग वर्गों में आते हैं। इन दोनों वर्गों के साथ अलग-अलग व्यवहार करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं है और इस मामले में ऐसा मानने का कोई आधार नहीं है।”
न्यायालय ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (कर्मचारियों के) पेंशन विनियम, 1995 के नियम 22 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है:
“किसी कर्मचारी का इस्तीफा, बर्खास्तगी, पद से हटाना अथवा सेवा समाप्त किया जाना, उसकी संपूर्ण पूर्व सेवा की क्षति करेगा और परिणामस्वरूप वह पेंशन लाभ के लिए अयोग्य होगा।”
कोर्ट ने यह भी कहा:
“जब स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का प्रावधान मौजूद हो, फिर भी यदि कोई कर्मचारी इस्तीफा देता है, तो ऐसा इस्तीफा (चाहे सेवा की अवधि कितनी भी लंबी हो) स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति नहीं माना जा सकता, जब तक कि वह कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की सभी आवश्यक शर्तें पूरी न करता हो।”
और आगे यह भी स्पष्ट किया गया कि:
“सनवर मल बनाम यूको बैंक से लेकर बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड बनाम घनश्याम चंद शर्मा तक के निर्णयों की श्रृंखला यह दर्शाती है कि ‘इस्तीफा’ और ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं, जिनके परिणाम भी अलग होते हैं, और केवल सेवा की अवधि के आधार पर एक को दूसरे से बदलना कानून की मंशा के विपरीत होगा। हम इससे अलग राय रखने का कोई कारण नहीं देखते।”
हाईकोर्ट के निर्देशों पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने डिवीजन बेंच द्वारा बैंक को नियम 22 में संशोधन पर “विचार” करने के निर्देश को भी रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा:
“अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाईकोर्ट की सीमित भूमिका है कि वह यह इंगित कर सकता है कि किन परिस्थितियों में किसी कानून की आवश्यकता है या किस प्रकार की खामी दूर की जा सकती है, लेकिन ऐसा भी केवल अनुरोध के रूप में किया जा सकता है। कोई बाध्यकारी आदेश नहीं दिया जा सकता।”
कोर्ट ने यह भी कहा:
“डिवीजन बेंच ने बैंक के निदेशक मंडल को नियम 22 में संशोधन पर विचार करने का जो निर्देश दिया, वह वास्तव में बैंक पर संशोधन करने का आदेश था, जबकि मलिक की याचिका में नियम 22 की वैधता को चुनौती ही नहीं दी गई थी। अतः यह निर्देश विधि से परे था।”
अनुच्छेद 142 के तहत विशेष राहत
हालांकि कोर्ट ने कानून के तहत मलिक के दावे को अस्वीकार कर दिया, लेकिन उनकी मानसिक अवस्था और लंबी निष्कलंक सेवा को देखते हुए अनुच्छेद 142 के तहत कुछ राहत प्रदान की। कोर्ट ने कहा:
“हम मलिक की इस ईमानदारी की सराहना करते हैं कि उन्होंने मानसिक अवसाद की स्थिति में सेवा जारी नहीं रखी। बतौर हेड कैशियर, वे सार्वजनिक धन के संरक्षक थे। यदि वे मानसिक अवसाद में रहते हुए ड्यूटी जारी रखते, तो नकद के प्रबंधन में त्रुटि हो सकती थी, जिससे संकट उत्पन्न हो सकता था।”
कोर्ट ने आदेश दिया:
“हालांकि मलिक ने 8 मार्च 2024 की द्विपक्षीय समझौते के तहत पेंशन का विकल्प नहीं चुना, फिर भी हम उन्हें विशेष रूप से दो सप्ताह का समय दे रहे हैं कि वे इस विकल्प का लाभ लें। यदि वे भविष्य निधि की राशि और उस पर लागू ब्याज बैंक को लौटाते हैं, तो वे पेंशन के पात्र माने जाएंगे।”
यदि वे ऐसा करने में असमर्थ हों, तो:
“वे दो सप्ताह के भीतर बैंक से वित्तीय सहायता की मांग कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में, बैंक एक आदर्श नियोक्ता की तरह मलिक को ₹5,00,000 (पाँच लाख रुपये) की एकमुश्त सहायता राशि दो महीने के भीतर प्रदान करेगा। यह राहत भविष्य के मामलों में उदाहरण के रूप में नहीं मानी जाएगी।”
अंतिम आदेश और निष्कर्ष
- मलिक की अपील खारिज की गई।
- बैंक की अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई।
- हाईकोर्ट के निर्देश (A) को बरकरार रखा गया, जबकि (B), (C), और (D) को रद्द कर दिया गया।
- अनुच्छेद 142 के तहत विशेष राहत प्रदान की गई।