भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मोटर बीमा दायित्व से जुड़े एक अहम फैसले में कहा है कि जब किसी ‘यूटिलिटी वाहन’ के पास ‘कॉन्ट्रैक्ट कैरेज’ परमिट हो और उसकी पैकेज पॉलिसी में निश्चित यात्री क्षमता का उल्लेख हो, तो बीमा कंपनी वाहन मालिक को यात्रियों के लिए क्षतिपूर्ति देने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। कोर्ट ने हाई कोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें बीमाकर्ता को ‘पे एंड रिकवर’ का निर्देश दिया गया था।
यह फैसला न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने श्याम लाल बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य मामले में सुनाया। मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या पैकेज बीमा पॉलिसी में मौजूद ‘लिमिटेशन ऐज़ टू यूज़’ क्लॉज, ऐसे यूटिलिटी वाहन में यात्रियों की कवरेज को सीमित कर सकता है जो रजिस्टर्ड सीटिंग कैपेसिटी और कॉन्ट्रैक्ट कैरेज परमिट के साथ पंजीकृत है।
मामला
अपीलकर्ता श्याम लाल के स्वामित्व वाले यूटिलिटी वाहन के साथ हुए एक हादसे से पांच अलग-अलग दावा याचिकाएं मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के समक्ष दायर हुईं। अधिकरण ने चालक को लापरवाह पाया और माना कि वाहन के पास श्रीराम जनरल इंश्योरेंस की वैध पैकेज पॉलिसी है। इस आधार पर बीमा कंपनी को क्षतिपूर्ति देने का निर्देश दिया गया।

हाई कोर्ट ने बीमा कंपनी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए ‘पे एंड रिकवर’ का आदेश पारित किया। हाई कोर्ट का मानना था कि पॉलिसी के “लिमिटेशन ऐज़ टू यूज़” क्लॉज के कारण वाहन यात्रियों को ले जाने के लिए अधिकृत नहीं था और कवरेज केवल कर्मचारी वर्ग (वर्कमेन कम्पनसेशन एक्ट, 1923 के तहत) तक सीमित थी। इसके खिलाफ वाहन मालिक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
पक्षकारों के तर्क
अपीलकर्ता का तर्क: वाहन एक ‘यूटिलिटी वैन’ है, जिसके पंजीकरण प्रमाणपत्र और कॉन्ट्रैक्ट कैरेज परमिट में 5 व्यक्तियों (4+1 ड्राइवर सहित) की क्षमता दर्ज है। पैकेज पॉलिसी में भी यही क्षमता दर्ज थी। ‘लिमिटेशन ऐज़ टू यूज़’ क्लॉज केवल ‘गुड्स व्हीकल’ पर लागू होता है, न कि ऐसे यूटिलिटी वाहन पर जो यात्री और सामान दोनों ले जाने के लिए डिज़ाइन किए गए हों।
बीमा कंपनी का तर्क: मृतक यात्री—जिनमें छात्र, कैटरिंग कर्मचारी, पेंटर और डाक विभाग का कर्मचारी शामिल थे—पॉलिसी की सीमा के अंतर्गत कवर नहीं थे। इसके अलावा, पांच दावों से यह साबित होता है कि वाहन में अनुमति से अधिक यात्री थे।
सुप्रीम कोर्ट की विवेचना
कोर्ट ने वाहन के आधिकारिक दस्तावेजों की जांच की और पाया कि पंजीकरण प्रमाणपत्र में इसे ‘यूटिलिटी वैन’ बताया गया है, जिसमें 5 सीटें हैं, और परमिट ‘कॉन्ट्रैक्ट कैरेज’ का है। मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 2(7) के अनुसार, ‘कॉन्ट्रैक्ट कैरेज’ किराए या इनाम पर यात्रियों को ले जाने के लिए होता है, जबकि ‘गुड्स कैरेज’ (धारा 2(14)) केवल सामान ले जाने के लिए।
बीमा पॉलिसी में वाहन को “बोलेरो कैंपर यूटिलिटी डीसी” बताया गया था। कोर्ट ने कहा, “यूटिलिटी वाहन स्पष्ट रूप से यात्रियों और सामान दोनों को ले जाने के लिए होता है; यात्री आवश्यक रूप से सामान के मालिक नहीं होते, जैसा कि बीमा पॉलिसी में 4+1 सीटिंग कैपेसिटी से स्पष्ट है।”
बीमा कंपनी के शाखा प्रबंधक ने भी जिरह में स्वीकार किया कि पॉलिसी वाहन के ‘यूटिलिटी वैन’ के रूप में पंजीकरण देखने के बाद जारी की गई थी। अतः ‘लिमिटेशन ऐज़ टू यूज़’ क्लॉज लागू नहीं होता।
अधिक यात्रियों के तर्क पर कोर्ट ने गवाह (PW2) की गवाही को महत्व दिया, जिसमें कहा गया था कि हादसे से पहले वाहन में केवल 4 यात्री थे। दुर्घटना में कुछ पैदल यात्री भी घायल हुए, जिससे पांच दावों की संख्या स्पष्ट होती है।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलें स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट का आदेश रद्द किया और अधिकरण का आदेश बहाल किया, जिससे बीमा कंपनी को पूर्ण क्षतिपूर्ति देनी होगी, बिना वाहन मालिक से वसूली के अधिकार के।
केवल एक मामूली संशोधन करते हुए, MACT केस नं. 134/2014 में आय की हानि से 1/3 हिस्सा व्यक्तिगत खर्च के रूप में घटाने का निर्देश दिया गया, ताकि ‘उचित क्षतिपूर्ति’ दी जा सके।