सुप्रीम कोर्ट ने MACT और श्रम न्यायालयों में लंबित मुआवज़ा वितरण सुनिश्चित करने के लिए पूरे देश में दिशा-निर्देश जारी किए

सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के मोटर वाहन दावा अधिकरणों (Motor Accident Claims Tribunals – MACT) और श्रम न्यायालयों में वर्षों से लंबित पड़े करोड़ों रुपये के मुआवज़ों के वितरण को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ द्वारा सुओ मोटो रिट याचिका (C) संख्या 7/2024 में पारित किया गया, जो गुजरात के सेवानिवृत्त जिला जज श्री बी.बी. पाठक के पत्र पर आधारित थी।

पृष्ठभूमि

दिनांक 25 मई 2024 को भेजे गए पत्र में श्री पाठक ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 (अब कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923) के तहत आवंटित बड़ी राशि के मुआवज़े के लंबित पड़े रहने की ओर ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस विषय पर सुओ मोटो याचिका दर्ज करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात, इलाहाबाद, बॉम्बे, कलकत्ता, दिल्ली और मद्रास उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी कर उनसे अपवितरित मुआवज़ा राशियों का ब्योरा मांगा। गुजरात हाईकोर्ट ने सभी क्षेत्रों से प्राप्त रिपोर्टों को संकलित कर सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया। वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा को इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया।

अपवितरित मुआवज़े की स्थिति

प्रस्तुत रिपोर्ट में निम्नलिखित चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए:

  • गुजरात: ₹282 करोड़ (MACT) और ₹6.61 करोड़ (श्रम न्यायालय)
  • इलाहाबाद: लगभग ₹239 करोड़ (MACT) और ₹92.39 करोड़ (श्रम न्यायालय)
  • बॉम्बे: ₹459 करोड़
  • कोलकाता: ₹2.53 करोड़
  • गोवा: ₹3.61 करोड़

न्यायालय की चिंता

पीठ ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि मुआवज़ा तय हो जाने के बावजूद, संबंधित दावेदारों ने वह राशि नहीं निकाली, जिससे उन्हें उनके वैध अधिकार से वंचित होना पड़ा। अदालत ने इस स्थिति को “बेहद चिंताजनक” करार दिया और प्रभावी समाधान की आवश्यकता बताई।

विधिक ढांचा और अवलोकन

अदालत ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 और 176 का उल्लेख किया, जो दावा दायर करने और राज्य सरकारों की नियम बनाने की शक्तियों से संबंधित हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि कई राज्यों ने अब तक धारा 176(अ) के तहत आवश्यक नियम नहीं बनाए हैं। ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय अंतरिम रूप से प्रैक्टिस डायरेक्शन जारी कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी प्रमुख दिशा-निर्देश

जब तक राज्य सरकारें औपचारिक नियम नहीं बनातीं, तब तक सभी उच्च न्यायालयों और अधिकरणों को निम्नलिखित निर्देशों का पालन करना होगा:

  1. दावेदार का पूरा विवरण अनिवार्य रूप से लेना – नाम, पता, आधार संख्या, पैन, बैंक विवरण आदि।
  2. बैंक विवरण का सत्यापन – मुआवज़ा देने से पूर्व प्रमाण पत्र या रद्द चेक के ज़रिए विवरण सत्यापित करना।
  3. सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर – केवल सत्यापित बैंक खातों में ही राशि हस्तांतरित की जाए।
  4. जानकारी अद्यतन करना आवश्यक – यदि दावेदार के संपर्क या बैंक विवरण बदलते हैं, तो उसकी जानकारी अदालती रिकॉर्ड में अपडेट करना अनिवार्य।
  5. फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश – अपवितरित राशियों को राष्ट्रीयकृत बैंकों में स्वतः नवीनीकरण वाली सावधि जमा योजना में निवेश किया जाए।
  6. डिजिटल डैशबोर्ड – राज्य सरकारें एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित करें जिससे लंबित मामलों की निगरानी की जा सके।
  7. जन-जागरूकता अभियान – विधिक सेवा प्राधिकरणों को पुलिस और राजस्व अधिकारियों की सहायता से अपवितरित लाभार्थियों को खोज निकालने के लिए विशेष अभियान चलाना होगा।
  8. निगरानी और रिपोर्टिंग – राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को प्रगति की निगरानी करनी होगी और चार माह में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
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कार्यान्वयन और अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को निर्देश दिए हैं कि वे इन उपायों को शीघ्र कार्यान्वित करें और 30 जुलाई 2025 तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करें, जिसमें अपवितरित मुआवज़ा राशियों की स्थिति स्पष्ट रूप से बताई गई हो। अगली सुनवाई 18 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पहले से ही कोई नियम या दिशा-निर्देश इन मुद्दों को संबोधित कर रहे हैं और यह आदेश उनसे मेल खाता है, तो वे लागू रह सकते हैं। साथ ही, उच्च न्यायालय इनसे आगे भी कदम उठा सकते हैं ताकि समय पर मुआवज़ा वितरित हो सके।

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निर्णय: In Re: Compensation Amounts Deposited With Motor Accident Claims Tribunals And Labour Courts, Suo Motu Writ Petition (C) No. 7 of 2024

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