सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 रद्द; केंद्र सरकार की ‘विधायी मनमानी’ पर सख्त टिप्पणी

न्यायपालिका की स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत को बरकरार रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (19 नवंबर) को एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। कोर्ट ने इस कानून को रद्द करते हुए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई और इसे न्यायिक निर्देशों की जानबूझकर की गई अवहेलना बताया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा पुराने फैसलों में बताई गई खामियों को दूर किए बिना उसी कानून को दोबारा लागू करना “अस्वीकार्य विधायी ओवररूलिंग” (Impermissible Legislative Overruling) है।

क्या है पूरा मामला?

वर्ष 2021 में मद्रास बार एसोसिएशन ने एक याचिका दायर कर इस कानून को चुनौती दी थी। याचिका में तर्क दिया गया था कि यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों, विशेष रूप से मद्रास बार एसोसिएशन मामलों में दिए गए निर्देशों का सीधा उल्लंघन करता है।

कोर्ट ने पाया कि संसद ने उन प्रावधानों को फिर से कानून का हिस्सा बना दिया जिसे कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका था। पीठ ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का बुनियादी ढांचा है और सरकार इसे कमजोर करने वाले कानून नहीं बना सकती।

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एक्ट की मुख्य खामियां और कोर्ट की आपत्तियां

सुप्रीम कोर्ट ने नए कानून और पुराने न्यायिक निर्देशों के बीच कई गंभीर विरोधाभासों को रेखांकित किया:

  1. कार्यकाल (Tenure): सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल सदस्यों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कम से कम 5 साल के कार्यकाल का निर्देश दिया था। इसके विपरीत, 2021 के एक्ट में इसे घटाकर 4 साल कर दिया गया था।
  2. न्यूनतम आयु सीमा: एक्ट में नियुक्ति के लिए 50 वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा तय की गई थी। कोर्ट ने इसे मनमाना बताया और कहा कि यह युवा और योग्य वकीलों को ट्रिब्यूनल का हिस्सा बनने से रोकता है।
  3. वकीलों की योग्यता: एक्ट में वकीलों के लिए 10 साल के अनुभव की अनिवार्यता और पात्रता से जुड़े न्यायिक मापदंडों की अनदेखी की गई थी।
  4. चयन समिति (Selection Committee): सर्च-कम-सिलेक्शन कमेटी के अधिकारों को सीमित करते हुए, एक्ट में प्रावधान था कि समिति अध्यक्ष पद के लिए केवल दो नामों का ही सुझाव दे सकती है। कोर्ट ने इसे चयन प्रक्रिया में बाधा माना।
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‘राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग’ के गठन का आदेश

कानून को रद्द करने के साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के कामकाज को सुव्यवस्थित करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार महीने के भीतर ‘राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग’ (National Tribunal Commission) का गठन करने का सख्त निर्देश (Mandamus) जारी किया है।

जब तक संसद कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप नया कानून नहीं बनाती, तब तक नियुक्तियां और सेवा शर्तें मद्रास बार एसोसिएशन 4 और 5 के पुराने फैसलों के आधार पर ही तय होंगी।

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मौजूदा सदस्यों को राहत

फैसले से कोई प्रशासनिक शून्यता न पैदा हो, इसके लिए कोर्ट ने मौजूदा सदस्यों के कार्यकाल को भी स्पष्ट किया:

  • ITAT (आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल): सदस्य 62 वर्ष की आयु तक और अध्यक्ष 65 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहेंगे।
  • CESTAT (सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय ट्रिब्यूनल): यहाँ भी सदस्यों के लिए 62 वर्ष और अध्यक्ष के लिए 65 वर्ष की आयु सीमा लागू होगी।

कोर्ट ने यह भी साफ किया कि 2021 के एक्ट के लागू होने से पहले की गई नियुक्तियां पुराने नियमों से ही संचालित होंगी, और उन पर रद्द किए गए कानून की छोटी अवधि की शर्तें लागू नहीं होंगी।

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