सेवा क़ानून पर एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रेखा खींची है कि सरकारी कर्मचारियों का ट्रांसफर यदि जनहित में किया जाए, तो वह कर्मचारियों के व्यक्तिगत अनुरोध पर किए गए ट्रांसफर से बिल्कुल अलग माना जाएगा। यह निर्णय सिविल अपील संख्या 4356/2025 (SLP (C) संख्या 2793/2023) में आया, जिसका शीर्षक था The Secretary to Government, Department of Health & Family Welfare & Anr. बनाम K.C. Devaki।
न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्री नारसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि जो कर्मचारी अपने स्वयं के अनुरोध पर ट्रांसफर होते हैं, वे नए कैडर में पहले से कार्यरत कर्मचारियों पर वरिष्ठता का दावा नहीं कर सकते — भले ही ट्रांसफर वैध व्यक्तिगत कारणों, जैसे कि चिकित्सा आवश्यकता, के आधार पर ही क्यों न हुआ हो।
मामले की पृष्ठभूमि
उत्तरदाता K.C. देवकी को प्रारंभ में 1979 में कर्नाटक सरकार के Indian System of Medicine and Homeopathy विभाग में स्टाफ नर्स के रूप में नियुक्त किया गया था। 1985 में, उन्होंने क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस के कारण एक क्लेरिकल पद — First Division Assistant (FDA) — में कैडर परिवर्तन का अनुरोध किया। एक मेडिकल बोर्ड ने उनके स्वास्थ्य की पुष्टि की और सरकार ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

महत्वपूर्ण बात यह थी कि देवकी ने लिखित रूप में सहमति दी थी कि वे FDA पद को उस कैडर में “अंतिम व्यक्ति के नीचे” वरिष्ठता के साथ स्वीकार करेंगी। इसके बाद, उन्हें 1986 में अस्थायी रूप से पोस्ट किया गया और फिर 19 अप्रैल 1989 को कर्नाटक सिविल सर्विसेज (जनरल रिक्रूटमेंट) नियम, 1977 के नियम 16(ए)(iii) के तहत स्थायी रूप से नियुक्त किया गया।
कई वर्षों बाद, देवकी ने 1 अक्टूबर 2007 की वरिष्ठता सूची को चुनौती दी, और तर्क दिया कि उनकी वरिष्ठता 1979 की मूल नियुक्ति (स्टाफ नर्स के रूप में) से मानी जानी चाहिए। कर्नाटक एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में निर्णय दिया और हाई कोर्ट ने भी उस निर्णय को बरकरार रखा। इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
मुख्य कानूनी मुद्दा
कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था: क्या कर्मचारी के अनुरोध पर — विशेष रूप से चिकित्सा कारणों से — एक पद से दूसरे पद पर किए गए ट्रांसफर की स्थिति में, वह कर्मचारी अपनी मूल वरिष्ठता को नए पद पर बनाए रख सकता है?
कोर्ट ने कर्नाटक सिविल सर्विसेज (जनरल रिक्रूटमेंट) नियम, 1977 के नियम 16(ए)(iii) का विश्लेषण किया, जो शारीरिक अक्षमता के कारण स्थायी रूप से अक्षम कर्मचारियों के लिए कैडर परिवर्तन की अनुमति देता है। इसके अलावा कोर्ट ने कर्नाटक गवर्नमेंट सर्वेंट्स (वरिष्ठता) नियम, 1957 के नियम 6 का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है:
“जहां ट्रांसफर अधिकारी के अनुरोध पर किया गया हो, उसे उस श्रेणी या सेवा के वरिष्ठता सूची में उस दिन या उससे पहले उस सेवा में नियुक्त सभी अधिकारियों के नीचे रखा जाएगा।”
कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय
न्यायमूर्ति नारसिम्हा ने निर्णय लिखते हुए जोर दिया कि जनहित में किए गए ट्रांसफर और कर्मचारी के अनुरोध पर किए गए ट्रांसफर का उद्देश्य मूल रूप से भिन्न होता है। पहले प्रकार का उद्देश्य प्रशासन की दक्षता है, जबकि दूसरा प्रकार व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखता है।
“कर्मचारियों के अनुरोध पर ट्रांसफर करना भी महत्वपूर्ण है, लेकिन… यह जनहित में किए गए ट्रांसफर के समान नहीं होता,” कोर्ट ने टिप्पणी की।
कोर्ट ने चेतावनी दी कि इन दोनों प्रकार के ट्रांसफर को आपस में मिलाना उचित नहीं है, जैसा कि इस मामले में हाई कोर्ट ने किया:
“हाई कोर्ट ने यह मानते हुए गलती की है कि अधिकारी के अनुरोध पर चिकित्सा आधार पर किया गया ट्रांसफर, जनहित में किए गए ट्रांसफर के समान है।”
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि देवकी ने स्पष्ट रूप से सहमति दी थी कि उन्हें FDA कैडर की वरिष्ठता सूची में सबसे नीचे रखा जाए, और यह बात 1989 की सरकारी नियुक्ति आदेश में स्पष्ट रूप से अंकित थी।
कोर्ट ने पहले के निर्णयों का भी हवाला दिया — K.P. Sudhakaran बनाम केरल राज्य (2006) और Surendra Singh Beniwal बनाम हुकम सिंह (2009) — ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि स्वैच्छिक ट्रांसफर पूर्व वरिष्ठता को नए कैडर में नहीं ले जाता।
अपील को स्वीकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट का दिनांक 25 अक्टूबर 2021 का निर्णय (W.P. No. 42244/2019) और कर्नाटक एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल का आदेश रद्द कर दिया। कोर्ट ने 2007 की सरकारी वरिष्ठता सूची को बरकरार रखा, जिसमें देवकी की वरिष्ठता 1989 की पुनर्नियुक्ति की तारीख से मानी गई थी।
कोर्ट ने किसी भी पक्ष को लागत (cost) देने का आदेश नहीं दिया।