सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह 3 दिसंबर को उस याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें एचआईवी संक्रमित मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एंटीरेट्रोवायरल (एआरवी) थेरेपी दवाओं की आपूर्ति और गुणवत्ता पर गंभीर चिंता जताई गई है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को बताया गया कि 16 राज्यों ने अब तक याचिकाकर्ताओं द्वारा सितंबर 2023 में दाखिल किए गए हलफनामे का जवाब नहीं दिया है। इस पर अदालत ने कहा, “इन 16 राज्यों को, यदि वे चाहें, तो इस बीच अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति है।”
यह याचिका वर्ष 2022 में एनजीओ नेटवर्क ऑफ पीपल लिविंग विद एचआईवी/एड्स और अन्य ने दाखिल की थी। इसमें एआरवी दवाओं की निरंतर आपूर्ति और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने की मांग की गई है ताकि देशभर में एचआईवी संक्रमित लोगों को बेहतर उपचार मिल सके।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने अदालत को बताया कि यह मामला एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है जो जीवनरक्षक एचआईवी दवाओं की गुणवत्ता से संबंधित है। जब उन्होंने बताया कि 16 राज्यों ने अभी तक अपना हलफनामा दाखिल नहीं किया है, तो पीठ ने पूछा, “अगर राज्य जवाब नहीं दे रहे हैं तो हम यह मामला कब तक लंबित रख सकते हैं?”
केंद्र और कुछ राज्यों की ओर से पेश वकीलों ने बताया कि उन्होंने अपने-अपने हलफनामे पहले ही दाखिल कर दिए हैं।
इससे पहले फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को एक माह के भीतर एआरवी दवाओं की गुणवत्ता पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। उस समय याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि केवल चार राज्यों ने ही जवाब दिया है, जबकि हलफनामे में दवा आपूर्ति प्रक्रिया और गुणवत्ता नियंत्रण से जुड़ी कई कमियां बताई गई थीं।
केंद्र सरकार ने जुलाई 2023 में अदालत को सूचित किया था कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (National AIDS Control Programme) के तहत देशभर में एआरवी थेरेपी केंद्रों के माध्यम से सभी एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों को मुफ्त और आजीवन एआरवी दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि फिलहाल दवाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन खरीद प्रक्रिया और गुणवत्ता जांच से जुड़े मुद्दों पर अभी भी निगरानी की आवश्यकता है। अब यह मामला 3 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।




