कट-ऑफ तारीख से पहले टीईटी पास करने वाले शिक्षकों की बर्खास्तगी अवैध: सुप्रीम कोर्ट ने बीएसए का आदेश रद्द किया

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2025 के एक फैसले में, उत्तर प्रदेश के दो सहायक अध्यापकों की सेवा समाप्ति को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना कि 31 मार्च 2019 की वैधानिक समय सीमा से पहले शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) की योग्यता प्राप्त कर लेने से उनकी सेवा सुरक्षित हो गई थी।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उन आदेशों को खारिज कर दिया, जिन्होंने 2012 में नियुक्ति के समय टीईटी प्रमाण पत्र न होने के आधार पर 2018 में की गई उनकी बर्खास्तगी को बरकरार रखा था।

यह अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच के 1 मई 2024 के अंतिम आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी, जिसने अपीलकर्ताओं की इंट्रा-कोर्ट अपील को खारिज कर दिया था। उस फैसले ने, 12 मार्च 2024 के एक सिंगल जज के उस आदेश की पुष्टि की थी, जिसने अपीलकर्ताओं की रिट याचिका (रिट – ए संख्या 17951 ऑफ 2018) को खारिज कर दिया था।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 23 अगस्त 2010 को राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा जारी एक अधिसूचना से शुरू होता है। यह अधिसूचना बच्चों का मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई अधिनियम) की धारा 23(1) के तहत जारी की गई थी, जिसने कक्षा I से VIII तक के शिक्षकों के लिए टीईटी पास करना एक न्यूनतम योग्यता बना दिया था।

25 जून 2011 को, कानपुर नगर में ज्वाला प्रसाद तिवारी जूनियर हाई स्कूल के प्रबंधन ने बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) की अनुमति से सहायक अध्यापकों के चार पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की। 3 जुलाई 2011 को एक विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें आवेदन की अंतिम तिथि 16 जुलाई 2011 थी। अपीलकर्ताओं (उमा कांत और एक अन्य) ने इन पदों के लिए आवेदन किया था।

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उत्तर प्रदेश राज्य में पहली टीईटी परीक्षा 13 नवंबर 2011 को आयोजित की गई थी। अपीलकर्ता संख्या 2 ने 25 नवंबर 2011 को टीईटी पास कर लिया।

13 मार्च 2012 को, बीएसए ने अपीलकर्ताओं के चयन को मंजूरी दे दी, और उन्होंने 17 मार्च 2012 को सहायक अध्यापक के रूप में पदभार ग्रहण किया। बाद में, अपीलकर्ता संख्या 1 ने भी 24 मई 2014 को टीईटी पास कर लिया।

इस बीच, 9 अगस्त 2017 को आरटीई अधिनियम की धारा 23 में एक संशोधन किया गया। इसमें यह प्रावधान जोड़ा गया कि “प्रत्येक शिक्षक, जो 31 मार्च 2015 को या उससे पहले नियुक्त या पद पर है, और न्यूनतम योग्यता नहीं रखता है… वह इस संशोधन के लागू होने की तारीख से चार साल की अवधि के भीतर (यानी 31 मार्च 2019 तक) ऐसी न्यूनतम योग्यताएं प्राप्त करेगा।”

इस संशोधन के बावजूद, 12 जुलाई 2018 को, बीएसए ने अपीलकर्ताओं की सेवाएं इस आधार पर समाप्त कर दीं कि नियुक्ति के समय उनके पास टीईटी की योग्यता नहीं थी। अपीलकर्ताओं ने इस बर्खास्तगी को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन उनकी रिट याचिका और बाद में विशेष अपील खारिज कर दी गई।

रखी गईं दलीलें

अपीलकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अमित आनंद तिवारी ने दलील दी कि राज्य में पहली टीईटी परीक्षा ही 13 नवंबर 2011 को आयोजित की गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि अपीलकर्ताओं ने क्रमशः 2011 और 2014 में टीईटी पास कर लिया था, इसलिए उन्होंने आरटीई अधिनियम में 2017 के संशोधन द्वारा निर्धारित विस्तारित समय सीमा के भीतर योग्यता प्राप्त कर ली थी, और उन्हें बहाल किया जाना चाहिए।

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प्रतिवादी-राज्य की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अंकित गोयल ने दलील दी कि अपीलकर्ताओं को नियुक्ति के समय ही टीईटी प्रमाण पत्र की आवश्यकता थी। हालांकि, फैसले में यह उल्लेख किया गया कि अधिवक्ता ने “निष्पक्ष रूप से यह स्वीकार किया… कि उनकी नियुक्ति के बाद, उन्होंने 2014 तक टीईटी प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया था।”

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपीलकर्ताओं की नियुक्ति की समय-सीमा का आरटीई अधिनियम और उसके 2017 के संशोधन के संदर्भ में विश्लेषण किया।

कोर्ट ने 9 अगस्त 2017 के संशोधन द्वारा जोड़ी गई आरटीई अधिनियम की धारा 23(2) के दूसरे प्रावधान को इस मामले में महत्वपूर्ण माना। यह प्रावधान उन शिक्षकों को, जो “31 मार्च 2015 को या उससे पहले नियुक्त या पद पर थे” और न्यूनतम योग्यता नहीं रखते थे, योग्यता हासिल करने के लिए चार साल (31 मार्च 2019 तक) का समय देता था।

कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता 31 मार्च 2015 तक पद पर थे और उन्होंने मई 2014 तक टीईटी की योग्यता हासिल कर ली थी।

पैराग्राफ 10 में, फैसले में कहा गया है: “इसलिए, हम यह समझने में विफल हैं कि 12 जुलाई 2018 को उनकी बर्खास्तगी की तारीख पर अपीलकर्ताओं को अयोग्य कैसे कहा जा सकता है, जबकि उन्होंने निर्विवाद रूप से 24 मार्च 2014 तक टीईटी पास कर लिया था।”

बेंच ने हाईकोर्ट के तर्क की आलोचना करते हुए पैराग्राफ 11 में कहा: “विशेष रूप से, सिंगल जज और हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, दोनों ने यह दर्ज किया कि अपीलकर्ताओं ने 2014 तक टीईटी पास कर लिया था। हालांकि, वे इस आधार पर आगे बढ़े कि चूंकि अपीलकर्ताओं के पास नियुक्ति के समय टीईटी पास प्रमाण पत्र नहीं था, इसलिए 6 साल तक काम करने के बाद उनकी बर्खास्तगी में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।”

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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस “हस्तक्षेप न करने” को “त्रुटिपूर्ण” (erroneous) पाया। कोर्ट ने आगे कहा कि 12 जुलाई 2018 के बर्खास्तगी आदेश में नियुक्ति के समय टीईटी की योग्यता न होने के अलावा बर्खास्तगी का कोई अन्य आधार नहीं बताया गया था।

कोर्ट ने पैराग्राफ 13 में निष्कर्ष निकाला: “…टीईटी पास करने की आवश्यकता का अनुपालन 31 मार्च 2019 तक किया जाना था, जब तक कि अपीलकर्ताओं ने निर्विवाद रूप से टीईटी पास कर लिया था।”

अंतिम निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किए:

  1. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (विशेष अपील संख्या 441 ऑफ 2024) और सिंगल जज (रिट – ए संख्या 17951 ऑफ 2018) के फैसले और अंतिम आदेश को रद्द और निरस्त कर दिया गया।
  2. 12 जुलाई 2018 के उस आदेश/संचार को रद्द और निरस्त कर दिया गया, जिसके द्वारा सहायक अध्यापकों के पदों पर अपीलकर्ताओं के चयन को वापस ले लिया गया था।
  3. प्रतिवादियों को “अपीलकर्ताओं को सहायक अध्यापक के पद पर तत्काल बहाल करने” का निर्देश दिया गया।
  4. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यद्यपि अपीलकर्ता “बकाया वेतन (back-wages) के हकदार नहीं होंगे, लेकिन उन्हें सेवा की निरंतरता (continuity of service) और वरिष्ठता (seniority) सहित अन्य सभी परिणामी लाभों (consequential benefits) के साथ बहाल किया जाएगा।”

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