सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि शिक्षण सेवा में बने रहने या पदोन्नति पाने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) अनिवार्य योग्यता है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि जिन शिक्षकों की सेवा सेवानिवृत्ति से पांच वर्ष से अधिक बची है, उन्हें सेवा में बने रहने के लिए TET पास करना अनिवार्य होगा। जो शिक्षक TET पास नहीं करना चाहते या असमर्थ हैं, वे स्वेच्छा से इस्तीफा दे सकते हैं या अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेकर समस्त सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
अदालत ने उन शिक्षकों के लिए राहत दी, जिनकी सेवानिवृत्ति में केवल पांच वर्ष शेष हैं। ऐसे शिक्षक बिना TET पास किए भी सेवा में बने रह सकेंगे।

यह फैसला तमिलनाडु और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों से दायर याचिकाओं पर आया, जिनमें सवाल उठाया गया था कि क्या TET को स्कूल सेवा में अनिवार्य किया जा सकता है। अदालत ने यह महत्वपूर्ण प्रश्न कि क्या राज्य अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए भी TET को अनिवार्य कर सकते हैं और इससे उनके अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बड़े पीठ को भेज दिया है।
राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) ने 2010 में कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताएं निर्धारित की थीं, जिनमें TET को शामिल किया गया था।
पृष्ठभूमि:
यह मामला मुख्य रूप से इस बात को लेकर उठा कि पहले से सेवा में कार्यरत शिक्षकों, पदोन्नति और अल्पसंख्यक संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों पर TET की अनिवार्यता कैसे लागू होगी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सेवा में पहले से कार्यरत शिक्षकों पर TET लागू नहीं होना चाहिए, जबकि राज्यों ने इसे शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया।
इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने अधिकांश शिक्षकों के लिए TET को अनिवार्य कर दिया है, जबकि अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों से जुड़े मुद्दे पर फैसला बड़े पीठ द्वारा लिया जाएगा।