सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद में भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत ससुरालवालों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि “इधर-उधर की कुछ तानेबाज़ी तो रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है, जिसे परिवार की खुशहाली के लिए आम तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।” यह फैसला जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने सुनाया।
मामला और पृष्ठभूमि
यह अपील गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी जिसमें अहमदाबाद के चांदखेड़ा पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर संख्या I-163/2019 और गांधीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में विचाराधीन आपराधिक मामला संख्या 116/2020 को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
विवाहिता महिला की शादी अपीलकर्ता कमल से वर्ष 2005 में हुई थी। 15 मई 2019 को पति द्वारा तलाक की कार्यवाही शुरू किए जाने के तीन दिन बाद, 20 जुलाई 2019 को महिला ने एफआईआर दर्ज कराई। इसमें मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का आरोप पति पर और कुछ तानों के आरोप ससुरालवालों पर लगाए गए। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि वह 2008 से कार्यरत है और उसके वेतन पर उसके ससुर ने नियंत्रण रखा।
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्राथमिकी तलाक की कार्यवाही का प्रतिशोध है और ससुरालवालों पर लगाए गए आरोप सामान्य, अस्पष्ट और दुर्भावनापूर्ण हैं। गुजरात हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर की समीक्षा करते हुए पाया कि महिला कई वर्षों से किराये के मकान में अलग रह रही थी और काम कर रही थी। ससुरालवालों के खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य प्रकृति के थे और किसी भी प्रकार की ठोस जानकारी से रहित थे।
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा: “इधर-उधर की कुछ तानेबाज़ी तो रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है, जिसे परिवार की खुशहाली के लिए आम तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।”
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि एफआईआर में दहेज मांग का कोई विशेष उदाहरण नहीं दिया गया और कहा: “ससुरालवालों के खिलाफ कार्यवाही चलाने का कोई मामला बनता नहीं है।”
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने इस बात को भी महत्वपूर्ण माना कि एफआईआर तलाक की नोटिस मिलने के कुछ ही दिनों बाद दर्ज की गई, जिससे महिला के आरोपों की मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगा।
हालांकि, पति के खिलाफ लगाए गए शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के आरोपों को कोर्ट ने सुनवाई योग्य माना और उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से अपील को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:
- दूसरे और तीसरे अपीलकर्ताओं (ससुरालवालों) के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया गया।
- पहले अपीलकर्ता (पति) के खिलाफ मामला विधि अनुसार आगे बढ़ेगा।
- गुजरात हाईकोर्ट का 1 फरवरी 2024 का आदेश, ससुरालवालों से संबंधित हिस्से में रद्द किया गया।
मामले का शीर्षक: Kamal & Ors. vs State of Gujarat & Anr.
पीठ: जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस मनमोहन
अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता: मोहम्मद परवेज़ डबास, उज्मी जमील हुसैन, नदीम कुरैशी, सैयद मेहदी इमाम
प्रत्युत्तरकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता: प्रशांत भगवती, स्वाति घिल्डियाल, सिद्धांत शर्मा, प्रफुल्ल भारद्वाज