सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को समान मामले के साथ जोड़ा

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को एक समान मामले के साथ टैग किया जिसमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसने जिला न्यायाधीश (प्रवेश स्तर) पदों की नियुक्ति से संबंधित नियमों में किए गए संशोधन को रद्द कर दिया था।

यह संशोधन मध्य प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 में किया गया था, जिसके तहत यह प्रावधान जोड़ा गया था कि यदि बार कोटा (अधिवक्ता कोटा) से दो लगातार चयन परीक्षाओं में उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिलते हैं, तो हाईकोर्ट जिला न्यायाधीश (प्रवेश स्तर) के पदों को अधीनस्थ न्यायपालिका के योग्य न्यायिक अधिकारियों से भर सकता है।

न्यायमूर्ति एम.एम. सुंधरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि उठाए गए मुद्दे एक अन्य लंबित मामले के समान हैं, और इसलिए दोनों मामलों को साथ सुना जाएगा।

यह संशोधन राज्य में जिला न्यायाधीशों की सीधी भर्ती में लगातार विफलता के कारण किया गया था। याचिका में बताया गया कि 2011 से 2015 के बीच कुल 304 रिक्तियां अधिसूचित की गईं, लेकिन केवल 11 अधिवक्ताओं को उपयुक्त पाया गया — यानी केवल 3.61 प्रतिशत पद ही अधिवक्ताओं के कोटे से भरे जा सके।

याचिका में कहा गया कि इस स्थिति के कारण उच्च न्यायिक सेवा में कार्यरत न्यायाधीशों पर कार्यभार कई गुना बढ़ गया, जिससे निस्तारण दर प्रभावित हुई और न्याय वितरण की प्रक्रिया बाधित हुई।

READ ALSO  घरेलू हिंसा मामले में साझा घर में रहने के अधिकार पर नागरिकता की स्थिति का कोई असर नहीं पड़ता: दिल्ली हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से रजिस्ट्रार जनरल द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया कि यह संशोधन किसी नई नियुक्ति विधि की स्थापना नहीं करता, बल्कि मौजूदा ढांचे के भीतर एक शर्त आधारित समायोजन है ताकि लंबे समय से रिक्त पड़े पदों को भरा जा सके और न्यायिक कार्यप्रणाली निरंतर बनी रहे।

याचिका में कहा गया, “नियम 5(1)(c) के प्रावधान को अधिवक्ता कोटे से जिला न्यायाधीशों की सीधी भर्ती की दीर्घकालिक विफलता के जवाब में एक आवश्यक संस्थागत कदम के रूप में पेश किया गया था, जो 2006 से अप्रभावी रहा है।”

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एम वाई इकबाल का देहांत

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने संशोधन के संवैधानिक और व्यावहारिक औचित्य को नहीं समझा। इसका उद्देश्य न्यायिक दक्षता को बनाए रखना और संविधान द्वारा निर्धारित ‘समयबद्ध न्याय वितरण’ के लक्ष्य को सुनिश्चित करना था।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कुछ उम्मीदवारों द्वारा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस संशोधन को रद्द कर दिया था, यह कहते हुए कि इससे बार और बेंच के बीच संतुलन प्रभावित होता है, जो भर्ती नीति की मूल भावना के विपरीत है।

READ ALSO  प्रथम दृष्टया मॉल पार्किंग शुल्क नहीं ले सकते हैं- जानिए हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पिड़ी

अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई उस समान याचिका के साथ करेगा जिसमें इसी विषय से संबंधित प्रश्न उठाए गए हैं।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles