सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें बिहार सरकार पर गंगा नदी में प्रदूषण रोकने संबंधी निर्देशों का पालन न करने के चलते ₹50,000 का जुर्माना लगाया गया था। इसके साथ ही, NGT ने बिहार के मुख्य सचिव की उपस्थिति भी अनिवार्य की थी ताकि राज्य द्वारा इस मामले में की गई प्रगति की रिपोर्ट दी जा सके।
NGT के इस आदेश पर रोक लगाने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान दिया। पीठ ने केंद्र और अन्य संबंधित पक्षों से चार हफ्तों के भीतर जवाब भी मांगा है। कोर्ट ने कहा, “आगे के आदेश तक विवादित आदेश पर स्थगन रहेगा।”
यह फैसला बिहार सरकार द्वारा दाखिल उस याचिका पर आया है जिसमें राज्य ने NGT के 15 अक्टूबर 2023 के आदेश को चुनौती दी थी। NGT ने अपने आदेश में बिहार सरकार की आलोचना की थी कि उसने गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी के नमूनों का विश्लेषण करने वाली आवश्यक रिपोर्ट समय पर नहीं सौंपी। ये रिपोर्टें गंगा नदी की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए बेहद अहम मानी जा रही थीं, खासतौर पर उन स्थानों पर जहां सहायक नदियां गंगा में मिलती हैं या जहां से गंगा बिहार में प्रवेश और निकास करती है।

NGT गंगा प्रदूषण के मसले की राज्यवार निगरानी कर रहा है और 2016 के ‘रिवर गंगा (पुनर्जीवन, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश’ के तहत निर्देशों के पालन पर जोर दे रहा है, जिसमें गंगा के संरक्षण के लिए व्यापक कदम उठाने की बात कही गई है।
NGT ने सभी राज्यों से गंगा और उसकी सहायक नदियों के बहाव मार्ग में प्रदूषण नियंत्रण उपायों और प्रगति रिपोर्ट को लेकर नियमित पालन की अपेक्षा जताई थी। बिहार सरकार द्वारा कथित रूप से इन आदेशों का पालन न किए जाने के चलते जुर्माना लगाया गया था और वरिष्ठ अधिकारियों की NGT में उपस्थिति भी सुनिश्चित करने को कहा गया था।
