अब वकीलों को बहस के लिए पहले ही देना होगा समय का अनुमान, सुप्रीम कोर्ट ने जारी की SOP

सुप्रीम कोर्ट ने अदालती कार्यवाही को सुव्यवस्थित करने और समय के उचित प्रबंधन के लिए एक नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लागू की है। 29 दिसंबर 2025 को जारी इस सर्कुलर के अनुसार, अब वकीलों को अपनी मौखिक दलीलों (Oral Arguments) के लिए पहले से ही समय सीमा तय करनी होगी।

यह निर्देश भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों के मार्गदर्शन में जारी किया गया है, जो तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।

सर्कुलर का उद्देश्य

सर्कुलर (F. No. 29/Judl./2025) में स्पष्ट किया गया है कि इस SOP का मुख्य उद्देश्य ‘प्रभावी कोर्ट मैनेजमेंट’ और ‘न्यायिक समय का समान वितरण’ सुनिश्चित करना है। अदालत का लक्ष्य मामलों के निपटारे में तेजी लाना और सुनवाई के दौरान होने वाली अनावश्यक देरी को कम करना है।

नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) की मुख्य बातें

सर्कुलर में सीनियर एडवोकेट्स, बहस करने वाले वकीलों और एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम निर्धारित किए गए हैं:

  1. समय सीमा का विवरण: सभी पोस्ट-नोटिस और रेगुलर हियरिंग मामलों में, वकीलों को सुनवाई शुरू होने से कम से कम एक दिन पहले अपनी बहस के लिए संभावित समय की जानकारी देनी होगी।
    • जमा करने का तरीका: यह जानकारी उसी ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से देनी होगी जिसका उपयोग वकील ‘अपीयरेंस स्लिप’ जमा करने के लिए करते हैं।
  2. लिखित दलीलों पर सीमा: तय की गई समय सीमा का पालन सुनिश्चित करने के लिए, लिखित दलीलों (Written Submissions) के विस्तार को सीमित कर दिया गया है। अब वकील अधिकतम पांच (5) पृष्ठों का संक्षिप्त नोट ही दाखिल कर सकेंगे।
    • समय सीमा: यह नोट सुनवाई की तारीख से कम से कम तीन (3) दिन पहले दाखिल करना अनिवार्य है।
    • अनिवार्य शर्त: वकील को यह नोट दाखिल करने से पहले इसकी एक प्रति विपक्षी पक्ष को सौंपनी होगी।
  3. कड़ाई से पालन: सर्कुलर में जोर दिया गया है कि सभी वकीलों को निर्धारित समय सीमा का कड़ाई से पालन करना होगा और अपनी मौखिक दलीलें उसी समय के भीतर समाप्त करनी होंगी।
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यह सर्कुलर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के विभिन्न विभागों, जिनमें तकनीकी और न्यायिक प्रशासन शामिल हैं, के रजिस्ट्रारों द्वारा हस्ताक्षरित है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट में लंबी बहसों की संस्कृति को बदलकर एक अधिक संगठित और समयबद्ध सुनवाई प्रक्रिया की ओर बढ़ने का संकेत है।

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