सुप्रीम कोर्ट ने कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक लिमिटेड की याचिका को खारिज करते हुए मुकदमों की अंतिमता (Finality in Litigation) के सिद्धांत को बरकरार रखा है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि किसी आदेश को चुनौती देने वाली पिछली विशेष अनुमति याचिका (SLP) को सुप्रीम कोर्ट में दोबारा आने की ‘विशिष्ट छूट’ (Specific Liberty) के बिना वापस ले लिया गया था, तो दूसरी SLP सुनवाई योग्य (Maintainable) नहीं है।
हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, कोर्ट ने बैंक की वित्तीय देनदारी को केवल पेंशनभोगियों के एक विशिष्ट समूह तक सीमित कर दिया है ताकि आगे की मुकदमेबाजी को रोका जा सके।
मामले की पृष्ठभूमि
इस कानूनी विवाद की शुरुआत हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश द्वारा CWP संख्या 1679/2010 में 15 मई 2012 को दिए गए एक फैसले से हुई थी। 2014 में एक खंडपीठ ने इस फैसले को पलट दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त 2022 को मामले को फिर से गुण-दोष के आधार पर निर्णय के लिए खंडपीठ के पास भेज दिया।
26 फरवरी 2024 को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपील (LPA संख्या 316/2012) स्वीकार कर ली और एकल न्यायाधीश के निर्देशों को बरकरार रखा। बैंक ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 23 सितंबर 2024 को कोर्ट ने SLP खारिज कर दी। इसके बाद, बैंक ने इस खारिज आदेश को वापस लेने के लिए एक विविध आवेदन (MA) दायर किया, जिसे 20 दिसंबर 2024 को वापस ले लिया गया। इस वापसी के दौरान बैंक ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दायर करने की छूट मांगी थी।
हाईकोर्ट ने 11 अप्रैल 2025 को पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद बैंक ने वर्तमान SLP के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
दलीलें
प्रतिवादी (पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केविन गुलाटी ने याचिका की पोषणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि मूल फैसले को सुप्रीम कोर्ट पहले ही 23 सितंबर 2024 को बरकरार रख चुका है। उन्होंने कहा कि पिछली SLP खारिज होने से फैसला पार्टियों के बीच अंतिम हो गया था, और वर्तमान याचिका मामले को नए सिरे से खोलने का एक अनुचित प्रयास है। उन्होंने टी.के. डेविड बनाम कुरुप्पमपडी सर्विस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड (2020) के फैसले का हवाला दिया।
याचिकाकर्ता बैंक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि न तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट ने बैंक के मुद्दों पर गुण-दोष (Merits) के आधार पर विचार किया है। उन्होंने कहा कि बैंक कम से कम एक बार “गुण-दोष पर गंभीर विचार” का हकदार है। सिब्बल ने चेतावनी दी कि अनुमानित 250 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ बैंक के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है। उन्होंने मनीषा निमेश मेहता बनाम आईसीआईसीआई बैंक (2024) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि SLP के सामान्य रूप से खारिज होने के बाद भी रिव्यू सुनवाई योग्य है, इसलिए रिव्यू आदेश को चुनौती दी जा सकती है।
प्रतिवादी संख्या 4 (स्टाफ पेंशन ट्रस्ट) की ओर से पेश अधिवक्ता शादान फरासत ने बैंक का समर्थन किया और कहा कि ट्रस्ट वर्तमान में दी जा रही राशि से अधिक भुगतान करने में असमर्थ है।
कोर्ट का विश्लेषण और तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने प्रारंभिक आपत्ति को स्वीकार करते हुए माना कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
पोषणीयता और मुकदमों की अंतिमता पर: कोर्ट ने पाया कि यह मामला तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है। पीठ ने उपाध्याय एंड कंपनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1999) और हाल ही में सतीश वी.के. बनाम फेडरल बैंक लिमिटेड (2025) के फैसलों पर भरोसा जताया।
कोर्ट ने कहा:
“जनहित इसी में है कि मुकदमेबाजी का अंत हो (maxim interest reipublicae ut sit finis litium)। यह सिद्धांत तब पूरी तरह लागू होता है जब किसी आदेश को चुनौती देने वाली कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ाया गया और याचिका वापस ले ली गई, और वादी कुछ समय बाद उसी कोर्ट में उसी आदेश को चुनौती देने लौटता है।”
पीठ ने स्पष्ट किया कि हालांकि SLP के बिना कारण बताए खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यदि रिव्यू खारिज हो जाए, तो पार्टी अपने आप सुप्रीम कोर्ट में वापस आ सकती है, जब तक कि उसे इसके लिए ‘विशिष्ट छूट’ न दी गई हो।
“यदि हाईकोर्ट पुनर्विचार क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से इनकार करता है, तो हमारे विचार में, उसी पक्ष को दोबारा इस कोर्ट में आने की अनुमति देना उचित और न्यायसंगत नहीं होगा, जब तक कि इस कोर्ट द्वारा विशिष्ट छूट प्रदान नहीं की गई हो।”
हाईकोर्ट द्वारा नज़ीरों (Precedents) के पालन पर: कोर्ट ने बड़ी बेंचों के पास भेजे गए संदर्भों (References) के कारण हाईकोर्ट द्वारा निर्णयों को टालने के मुद्दे को भी संबोधित किया। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बनाम जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (2023) का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कानूनी स्थिति स्पष्ट की:
“हम यह बिल्कुल स्पष्ट करते हैं कि हाईकोर्ट मौजूदा कानून के आधार पर मामलों का फैसला करना जारी रखेंगे। जब तक इस कोर्ट द्वारा विशेष रूप से निर्देश न दिया जाए, किसी संदर्भ या पुनर्विचार याचिका के परिणाम की प्रतीक्षा करना उचित नहीं है। हाईकोर्ट के लिए यह कहना भी खुला नहीं है कि किसी फैसले पर बाद की समान पीठ (Coordinate Bench) ने संदेह व्यक्त किया है, इसलिए उसका पालन नहीं किया जाएगा।”
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका (SLP) को in limine (शुरुआत में ही) खारिज कर दिया।
हालांकि, कपिल सिब्बल द्वारा उठाए गए विशिष्ट वित्तीय बाधाओं को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश जारी किया। पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता बैंक की देनदारी/दावे केवल मूल रिट याचिकाकर्ताओं के 141 व्यक्तियों और 45 जीवनसाथियों (कुल 186) तक ही सीमित रहेंगे। कोर्ट ने कहा कि यह निर्देश भविष्य में और मुकदमेबाजी को रोकने के लिए विशेष तथ्यों के आधार पर दिया गया है और यह एक बाध्यकारी नज़ीर (Binding Precedent) नहीं होगा।
केस विवरण
- केस टाइटल: कांगड़ा सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम कांगड़ा सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन (रजि.) व अन्य
- केस नंबर: विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 15870/2025
- कोरम: जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र
- साइटेशन: 2025 INSC 1416

