विशेष अदालतों के गठन में विफलता पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वे विशेष कानूनों जैसे एनआईए एक्ट, मकोका और यूएपीए के तहत मामलों की सुनवाई के लिए नई अदालतें गठित करने के बजाय पहले से मौजूद अदालतों को ही “विशेष अदालतों” के रूप में नामित कर रहे हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने यह टिप्पणी नक्सल समर्थक बताए गए कैलाश रामचंदानी की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान की। रामचंदानी को 2019 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में हुए आईईडी विस्फोट के मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें क्विक रिस्पांस टीम (QRT) के 15 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी।

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पीठ ने स्पष्ट कहा कि मौजूदा अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित करने से न्यायिक व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है और इससे विचाराधीन बंदियों, वरिष्ठ नागरिकों, हाशिए पर रहने वाले लोगों और वैवाहिक विवादों जैसे अन्य संवेदनशील मामलों में देरी होती है।

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“यदि अतिरिक्त अदालतों का गठन नहीं किया गया, तो विशेष कानूनों के तहत आरोपियों को जमानत देनी पड़ सकती है, क्योंकि मामलों के त्वरित निपटान के लिए प्रभावी व्यवस्था मौजूद नहीं है,” पीठ ने टिप्पणी की।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल अदालतों को नामित करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि नई न्यायिक संरचना का निर्माण, न्यायाधीशों और कर्मचारियों की नियुक्ति तथा आवश्यक सरकारी स्वीकृति लेना अत्यंत आवश्यक है।

अदालत ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को अंतिम अवसर देते हुए चार सप्ताह के भीतर एक ठोस प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, जिसमें एनआईए, मकोका और यूएपीए जैसे विशेष कानूनों के तहत विशेष अदालतों की स्थापना की योजना स्पष्ट हो।

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इससे पहले 23 मई को भी शीर्ष अदालत ने एनआईए मामलों के लिए समर्पित अदालतों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में सैकड़ों गवाह होते हैं और इनका पूरे देश पर प्रभाव होता है। लेकिन जब वही अदालतें अन्य मामलों की भी सुनवाई कर रही हों, तो विशेष मामलों की सुनवाई में विलंब होना स्वाभाविक है।

अदालत ने दोहराया कि एकमात्र व्यावहारिक समाधान यह है कि इन विशेष कानूनों के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें अलग से स्थापित की जाएं और इन अदालतों में रोजाना सुनवाई की व्यवस्था हो।

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अब अदालत इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद केंद्र और राज्य सरकारों के जवाबों के साथ करेगी।

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