सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात पुलिस द्वारा 17 वर्षीय किशोर के कथित यौन उत्पीड़न और हिरासत में पिटाई के आरोपों पर दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को गुजरात हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के प्रति सहानुभूति जताई लेकिन मंच की पसंद पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा, “हमें आपसे पूरी सहानुभूति है, लेकिन आपने हाईकोर्ट का रुख क्यों नहीं किया?” अदालत ने दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत राहत हाईकोर्ट से मांगी जा सकती है।
पीड़ित की बहन द्वारा दाखिल याचिका में आरोप लगाया गया कि 18 अगस्त को बोटाद कस्बे की पुलिस ने लड़के को सोना और नकदी चोरी के शक में उठाया और 19 से 28 अगस्त तक अवैध हिरासत में रखा। इस दौरान उसे बेरहमी से पीटा गया, यौन शोषण किया गया और न तो मजिस्ट्रेट और न ही किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष 24 घंटे के भीतर पेश किया गया।
याचिका में यह भी कहा गया कि पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद अनिवार्य मेडिकल जांच नहीं कराई। इसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS), पोक्सो अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कर स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई।
याचिकाकर्ता ने गुजरात कैडर के अधिकारियों को छोड़कर विशेष जांच दल (SIT) गठित करने या वैकल्पिक रूप से अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच कराने की मांग की। इसके अलावा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली से मेडिकल बोर्ड बनाकर पीड़ित की चोटों की जांच करने का निर्देश देने की गुहार भी लगाई गई।
पीठ ने हालांकि कहा कि ऐसी मांगों पर हाईकोर्ट भी विचार कर सकता है। जब वकील ने तर्क दिया कि यह मुद्दा पूरे देश में नाबालिगों की पुलिस हिरासत में यातना से जुड़ा है, तो अदालत ने कहा, “आप हाईकोर्ट जाइए, अगर हाईकोर्ट आपके मामले पर विचार नहीं करता है तो वापस आइए। हम आपकी याचिका पर गौर करेंगे।”
याचिकाकर्ता ने बोटाद थाने की सीसीटीवी फुटेज नष्ट होने की आशंका भी जताई। इस पर पीठ ने कहा, “यदि आप समय से हाईकोर्ट जाएंगे तो फुटेज नष्ट नहीं होगा।” अदालत ने इसके बाद याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।




