नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तत्काल क्रियान्वयन पर केंद्र से जवाब मांगा सुप्रीम कोर्ट ने

 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें 2023 के नारी शक्ति वंदन अधिनियम को तत्काल लागू करने की मांग की गई है। इस कानून के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे कानूनों का क्रियान्वयन कार्यपालिका का विशेषाधिकार है।

न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि अदालत इस याचिका पर विचार करेगी, लेकिन नीति संबंधी मामलों में हस्तक्षेप की सीमाएं हैं।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “हमारे संविधान की प्रस्तावना कहती है कि सभी नागरिकों को सामाजिक और राजनीतिक समानता का अधिकार है। इस देश में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक कौन है? महिलाएं—जो लगभग 48 प्रतिशत हैं। यह महिलाओं की राजनीतिक समानता का प्रश्न है।”

यह याचिका कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने अधिवक्ता वरुण ठाकुर के माध्यम से दाखिल की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने अदालत में दलील दी कि “75 वर्षों की आज़ादी के बाद भी महिलाओं को प्रतिनिधित्व पाने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ रहा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”
याचिका में कहा गया कि अधिनियम की वह शर्त, जिसके तहत नई जनगणना और परिसीमन (delimitation) के बाद ही आरक्षण लागू होगा, “एक बाधा” है और इसे “शून्य घोषित किया जाए” ताकि 33% आरक्षण तत्काल लागू हो सके।

संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) अधिनियम, 2023 को सितंबर 2023 में संसद के विशेष सत्र के दौरान लगभग सर्वसम्मति से पारित किया गया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 28 सितंबर 2023 को इस पर अपनी स्वीकृति दी थी।
कानून के अनुसार, महिलाओं के लिए आरक्षण अगली जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही लागू होगा। यह प्रावधान 15 वर्षों तक लागू रहेगा, जिसे संसद आगे बढ़ा सकती है।

इससे पहले 10 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने जया ठाकुर और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन (NFIW) द्वारा दाखिल याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था। उस समय अदालत ने कहा था कि जया ठाकुर की याचिका निरर्थक हो चुकी है क्योंकि विधेयक अब अधिनियम बन चुका है। वहीं NFIW को अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल याचिका वापस लेकर उचित मंच पर जाने की सलाह दी गई थी।
नवंबर 2023 में भी शीर्ष अदालत ने कहा था कि अधिनियम के उस हिस्से को हटाना “बहुत कठिन” होगा जो इसके क्रियान्वयन को अगली जनगणना से जोड़ता है।

READ ALSO  Chandigarh Mayoral Polls: SC Seeks Ballot Papers, Video of Counting Day for Perusal on Tuesday

याचिका में कहा गया है कि आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है। लोकसभा में महिला सांसदों की हिस्सेदारी लगभग 15 प्रतिशत है, जबकि कई राज्यों में यह 10 प्रतिशत से भी कम है।

अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि समानता के संवैधानिक सिद्धांत का सम्मान करते हुए भी कानून को लागू करने का समय और तरीका तय करना कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है।

READ ALSO  जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्त हेतु एक वकील को 7 साल की निरंतर प्रैक्टिस होनी चाहिए: इलाहाबाद हाई कोर्ट
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles