सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest (SARFAESI) Act, 2002 की धारा 18 के तहत डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) के किसी प्रक्रियात्मक आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने पर पूर्व-डिपॉजिट (pre-deposit) की अनिवार्यता लागू नहीं होती। यह निर्णय न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ द्वारा M/s Sunshine Builders and Developers बनाम HDFC Bank Ltd. एवं अन्य मामले में सुनाया गया।
मामला पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता M/s Sunshine Builders and Developers ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 19 मार्च 2024 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। यह आदेश Writ Petition No. 3929 of 2024 में पारित किया गया था, जिसमें हाई कोर्ट ने डेब्ट रिकवरी अपीलेट ट्रिब्यूनल (DRAT) के 29 फरवरी 2024 के आदेश को बरकरार रखा था। DRAT ने अपील की सुनवाई से पहले SARFAESI अधिनियम की धारा 18(1) के अंतर्गत ₹125 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया था।
DRAT के समक्ष की गई अपील एक प्रक्रियात्मक मुद्दे से संबंधित थी — विशेष रूप से, नीलामी क्रेताओं को पक्षकार बनाने और डिफॉल्ट की गई अवधि को माफ करने से संबंधित आवेदनों को अस्वीकार किए जाने को चुनौती दी गई थी, जो कि DRT में लंबित securitisation application का हिस्सा थे।

हाई कोर्ट का दृष्टिकोण
बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह माना कि अपीलकर्ता SARFAESI अधिनियम की धारा 2(1)(f) के तहत “उधारकर्ता” की परिभाषा में आता है, क्योंकि उसने बंधक निर्माण के लिए सहमति दी थी। हाई कोर्ट ने कहा:
“इस परिभाषा से यह पूर्णतः स्पष्ट है कि एक मॉर्टगेजर, भले ही वह गारंटर या मूल उधारकर्ता न हो, फिर भी ‘उधारकर्ता’ की परिभाषा में शामिल होगा।”
इस आधार पर, हाई कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि धारा 18 के तहत पूर्व-डिपॉजिट की आवश्यकता अपीलकर्ता पर लागू होती है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की इस राय से असहमति जताई और कहा कि मुख्य मुद्दा यह है कि क्या प्रक्रियात्मक आदेश के विरुद्ध दायर अपील में भी पूर्व-डिपॉजिट आवश्यक है, जबकि यह आदेश देनदारी निर्धारित नहीं करता।
न्यायालय ने टिप्पणी की:
“हमारा विचार है, यद्यपि प्राथमिक दृष्टिकोण से, कि धारा 18 में प्रयुक्त शब्द ‘any order’ को एक सार्थक व्याख्या दी जानी चाहिए। क्या DRT द्वारा पारित प्रत्येक आदेश को, यदि चुनौती दी जाती है, पूर्व-डिपॉजिट के अधीन माना जाएगा?”
अदालत ने आगे कहा:
“यह समझ में आता है कि यदि DRT द्वारा कोई अंतिम आदेश पारित किया गया हो, जिसमें उधारकर्ता की देनदारी तय की गई हो, और उसके विरुद्ध अपील दायर की जाती हो, तब पूर्व-डिपॉजिट की व्यवस्था लागू हो सकती है। परंतु यदि आदेश केवल यह हो कि नीलामी क्रेता को पक्षकार न बनाया जाए, तो क्या तब भी यही स्थिति रहेगी?”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को पुनर्विचार हेतु हाई कोर्ट को वापस भेज दिया। साथ ही निर्देश दिया कि Writ Petition No. 3929 of 2024 की पुनः सुनवाई कर, कानून के अनुसार निर्णय लिया जाए।
कोर्ट ने निष्कर्ष रूप में कहा:
“हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है। मामला हाई कोर्ट को पुनः विचारार्थ भेजा जाता है… यदि हाई कोर्ट अपीलकर्ता के विरुद्ध कोई प्रतिकूल आदेश पारित करता है, तो वह पुनः इस न्यायालय का रुख कर सकता है।”
उद्धरण:
M/s Sunshine Builders and Developers बनाम HDFC Bank Limited एवं अन्य,
सिविल अपील संख्या: 5290 / 2025 (SLP (C) No. 10875 of 2025 से उत्पन्न)