सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि दुर्घटना करने वाले वाहन में अन्य व्यक्तियों की महज उपस्थिति, भले ही वह साबित हो जाए, उन्हें आपराधिक इरादे या अपराध में शामिल होने का दोषी नहीं बनाती है। कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें वाहन में सवार चार अन्य लोगों को अतिरिक्त आरोपी के रूप में तलब करने की मांग की गई थी।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के उन फैसलों को सही ठहराया, जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 319 के तहत दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला याचिकाकर्ता रज्जन लाल उर्फ रजनू द्वारा दर्ज कराई गई एक एफआईआर से जुड़ा है। आरोप था कि जब शिकायतकर्ता अपने बेटे के साथ साइकिल से अपने फार्महाउस से लौट रहा था, तब एक जीप ने जानबूझकर उन्हें टक्कर मारी। एफआईआर के अनुसार, जीप में पांच नामित व्यक्ति बैठे थे, जिससे शिकायतकर्ता और उसके बेटे को चोटें आईं।
हालाँकि एफआईआर में पांच व्यक्तियों को नामजद किया गया था, लेकिन पुलिस ने जांच के बाद केवल वाहन के चालक के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट (चार्जशीट) दायर की। अन्य चार नामजद व्यक्तियों को आरोपी न बनाए जाने से नाराज याचिकाकर्ता ने उन्हें ट्रायल का सामना करने के लिए तलब करने हेतु धारा 319 CrPC के तहत आवेदन दायर किया। अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने इस आवेदन को खारिज कर दिया था, और बाद में हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की थी।
दलीलें और जांच रिपोर्ट
याचिकाकर्ता के वकील ने जोर देकर तर्क दिया कि पुरानी रंजिश के कारण यह टक्कर “सुनियोजित” (stage managed) थी। यह कहा गया कि याचिकाकर्ता और उसके बेटे ने पुलिस के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा था कि उन्होंने सभी पांचों नामजद व्यक्तियों को वाहन में बैठे देखा था। याचिकाकर्ता का कहना था कि अन्य चार व्यक्तियों की निर्दोषता का फैसला केवल “पूर्ण ट्रायल” में ही हो सकता है।
दूसरी ओर, राज्य सरकार ने एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की। सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि उसने पहले (23 सितंबर, 2025 को) इस बात पर चिंता जताई थी कि एफआईआर में पांच नाम होने के बावजूद चार्जशीट केवल एक व्यक्ति के खिलाफ क्यों दायर की गई। इसके बाद, सरकारी वकील ने एक रिपोर्ट सौंपी जिसमें बताया गया कि उच्च स्तर पर जांच की स्वतंत्र और निष्पक्ष समीक्षा की गई थी। आगे की जांच में भी मूल निष्कर्ष सही पाए गए कि केवल चालक ही इसमें शामिल था और अन्य लोगों को छोड़ दिया गया था।
कोर्ट की टिप्पणियाँ और विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए पीडब्लू-1 (शिकायतकर्ता) और पीडब्लू-2 (उनके बेटे) के बयानों की जांच की। पीठ ने पाया कि उनकी गवाही केवल इस हद तक सीमित थी कि “चार्जशीट में शामिल एकमात्र आरोपी” वाहन चला रहा था।
अन्य चार व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों के संबंध में, कोर्ट ने कहा:
“अन्य चार लोगों की महज उपस्थिति किसी भी संलिप्तता को स्थापित नहीं करती है।”
कोर्ट ने एफआईआर और चश्मदीद गवाहों के बयानों का बारीकी से परीक्षण किया। यह नोट किया गया कि गवाहों ने कहा था कि जब वे फार्महाउस जा रहे थे तब उन्होंने वाहन में पांच पहचाने जाने योग्य व्यक्तियों को बैठे देखा था, लेकिन टक्कर उनकी वापसी के समय हुई। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“ऐसा कोई बयान नहीं है कि टक्कर के समय अन्य चार लोग वाहन के अंदर थे। भले ही वे वाहन के अंदर थे, जैसा कि ट्रायल कोर्ट ने सही पाया है, ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह सुझाव दे कि वाहन में यात्रा कर रहे चार व्यक्तियों का कोई आपराधिक इरादा था।”
धारा 319 CrPC पर कानूनी स्थिति
CrPC की धारा 319 के कानूनी दायरे को संबोधित करते हुए, पीठ ने जोर दिया कि यह कोर्ट को दी गई एक स्वतः संज्ञान (suo motu) शक्ति है। हालांकि शिकायतकर्ता इसका अनुरोध कर सकता है, लेकिन इसका प्रयोग ट्रायल के दौरान सामने आए साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट की संतुष्टि पर निर्भर करता है।
कोर्ट ने कहा:
“अतिरिक्त सत्र न्यायालय, जिसने साक्ष्य दर्ज किए हैं, ने धारा 319 CrPC के तहत स्वतः संज्ञान शक्ति का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं पाया; जिसे केवल शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप पर हल्के में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।”
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के आदेश में हस्तक्षेप करने का “बिल्कुल कोई कारण नहीं” पाया और विशेष अनुमति याचिका (SLP) को योग्यताहीन बताते हुए खारिज कर दिया।
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उसके या हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां मामले के अंतिम निपटारे में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेंगी। कोर्ट ने कहा:
“हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि हमने एकमात्र आरोपी के दोष पर किसी भी तरह से कोई राय नहीं दी है, जिस पर कोर्ट के समक्ष पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जाना है।”
केस डीटेल्स:
- केस टाइटल: रज्जन लाल उर्फ रजनू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
- केस नंबर: स्पेशल लीव पिटीशन (क्रिमिनल) नंबर 6108 ऑफ 2025
- कोरम: जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन

