भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में तमिलनाडु राज्य द्वारा पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अंतर्गत बनाए गए पंजीकरण नियमों के नियम 55A(i) को मूल अधिनियम के विरुद्ध (अल्ट्रा वायर्स) घोषित करते हुए रद्द कर दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उप-पंजीयक (Sub-Registrar) को यह अधिकार नहीं है कि वह इस आधार पर किसी दस्तावेज़ का पंजीकरण करने से मना कर दे कि निष्पादक (executant) ने संपत्ति पर स्वामित्व दर्शाने वाला शीर्षक दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया है।
यह निर्णय न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ द्वारा सुनाया गया।
पृष्ठभूमि:
यह मामला एक बिक्री विलेख (sale deed) के पंजीकरण से संबंधित है, जो 2 सितंबर 2022 को जयरामन मुदलियार द्वारा के. गोपी के पक्ष में निष्पादित किया गया था। उप-पंजीयक ने इसका पंजीकरण यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि विक्रेता ने संपत्ति पर अपने शीर्षक का प्रमाण नहीं दिया। इस निर्णय को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने रिट याचिका दायर की, जो खारिज कर दी गई।

हालांकि जिला पंजीयक ने 4 सितंबर 2023 को मामले पर पुनर्विचार का आदेश दिया, फिर भी उप-पंजीयक ने 3 अक्टूबर 2023 को पुनः पंजीकरण से इनकार कर दिया। इसके बाद की रिट याचिका और रिट अपील को मद्रास हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट का रुख:
मद्रास हाई कोर्ट की खंडपीठ ने तमिलनाडु पंजीकरण नियमों के नियम 55A का हवाला देते हुए पंजीकरण की अस्वीकृति को उचित ठहराया और कहा कि विक्रेता का स्वामित्व प्रमाणित नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट में दलीलें:
अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 उप-पंजीयक को यह अधिकार नहीं देता कि वह दस्तावेज़ के निष्पादक के स्वामित्व की जांच करे। नियम 55A(i), जो शीर्षक दस्तावेज़ के अभाव में पंजीकरण को रोकता है, धारा 69 के तहत नियम बनाने की शक्ति के बाहर है और अधिनियम की योजना के विपरीत है।
तमिलनाडु राज्य की ओर से महाधिवक्ता (Advocate General) ने तर्क दिया कि यह नियम फर्जी लेन-देन को रोकने के लिए बनाया गया है और यह धाराएं 22-A व 22-B के अंतर्गत आता है, जो राज्य संशोधन द्वारा जोड़ी गई थीं।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
न्यायालय ने नियम 55A का परीक्षण किया, जिसमें पिछले शीर्षक दस्तावेज़, अड़चन प्रमाणपत्र (encumbrance certificate), और मूल विलेख न होने पर अन्य राजस्व अभिलेखों की मांग की गई है।
कोर्ट ने कहा कि:
“पंजीकरण अधिकारी को निष्पादक के स्वामित्व से कोई लेना-देना नहीं है। उसके पास यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं है कि निष्पादक के पास शीर्षक है या नहीं… यहां तक कि अगर किसी निष्पादक के पास शीर्षक नहीं है, फिर भी अगर अन्य सभी प्रक्रियात्मक शर्तें पूरी हैं, तो दस्तावेज़ का पंजीकरण रोका नहीं जा सकता।”
कोर्ट ने निष्कर्ष दिया:
“नियम 55A(i) पंजीकरण अधिनियम, 1908 के प्रावधानों से असंगत है और इस प्रकार अल्ट्रा वायर्स है।”
फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के वे आदेश रद्द कर दिए जिन्होंने अपीलकर्ता की रिट याचिका और रिट अपील खारिज की थी। न्यायालय ने अपीलकर्ता को आदेश दिया कि वह बिक्री विलेख एक माह के भीतर पंजीकरण के लिए प्रस्तुत करे, और पंजीकरण अधिकारी सभी प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं के पालन के बाद दस्तावेज़ का पंजीकरण करें।
“अपील उपर्युक्त शर्तों के अधीन स्वीकार की जाती है।”
मामला: के. गोपी बनाम उप-पंजीयक व अन्य
नागरिक अपील संख्या: 3954/2025 | निर्णय दिनांक: 7 अप्रैल 2025
पीठ: न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां