सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक निराधार याचिका दायर करने पर एक वकील पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया और कहा कि याचिका में अनुचित राहत मांगी गई, जिससे “कोर्ट का माहौल खराब हुआ”।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अधिवक्ता संदीप टोडी द्वारा दायर याचिका पर कड़ी आपत्ति जताई। टोडी खुद इस मामले में याचिकाकर्ता के रूप में पेश हुए थे। कोर्ट ने न केवल उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी, बल्कि यह भी निर्देश दिया कि ₹5 लाख की लागत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के खाते में चार सप्ताह के भीतर जमा की जाए।
न्यायमूर्ति नाथ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “आपने इस कोर्ट का माहौल खराब किया है। कोई भी विवेकशील वकील संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत ऐसी निरर्थक याचिका दाखिल नहीं करेगा।”

अनुच्छेद 32 नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का अधिकार देता है।
पीठ ने कहा, “यदि हम याचिका को सादे रूप से वापस लेने की अनुमति दे देंगे, तो इससे गलत संदेश जाएगा।” अदालत ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के दुरुपयोग को हल्के में नहीं लिया जाएगा।
यह याचिका 25 मार्च को दायर की गई थी, जिसमें मुंबई की पारिवारिक अदालत द्वारा 25 सितंबर 2019 को नेहा टोडी उर्फ नेहा सीताराम अग्रवाल को दी गई राहतों पर एकतरफा स्थगन आदेश (ex-parte stay) मांगा गया था। याचिका में भारत संघ, मुंबई की फैमिली कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट को प्रतिवादी बनाया गया था।
अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद तय की है, ताकि यह जांचा जा सके कि जुर्माना राशि जमा की गई है या नहीं।