एक महत्वपूर्ण न्यायिक टिप्पणी में, सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) घोटाले को छत्तीसगढ़ से स्थानांतरित करने की प्रवर्तन निदेशालय (ED) की याचिका पर सवाल उठाते हुए एजेंसी को लोगों के मौलिक अधिकारों के प्रति संवेदनशील रहने की नसीहत दी है। यह मामला सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ा हुआ है।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भूयान की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल याचिका पर आपत्ति जताई, जो सामान्यतः व्यक्तियों द्वारा उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर दायर की जाती है। पीठ ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में टिप्पणी की, “अगर ईडी के भी मौलिक अधिकार हैं, तो उसे लोगों के मौलिक अधिकारों का भी ध्यान रखना चाहिए।”
यह टिप्पणी उस समय आई जब ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने की याचिका को वापस लेने की अनुमति मांगी। ईडी ने पहले दावा किया था कि घोटाले में आरोपी पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा ने अग्रिम जमानत का दुरुपयोग किया है और छत्तीसगढ़ के कुछ संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को प्रभावित कर न्यायिक राहत दिलाने की कोशिश की गई।
यह विवाद ईडी द्वारा 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत दायर शिकायत से उत्पन्न हुआ था, जो छत्तीसगढ़ की आर्थिक अपराध शाखा और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज प्राथमिकी और आरोप पत्र पर आधारित थी। फरवरी 2015 में राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी ने एनएएन के कई कार्यालयों पर छापा मारा था, जिसमें ₹3.64 करोड़ की बेहिसाब नकदी और निम्न गुणवत्ता वाले चावल व नमक के नमूने बरामद किए गए थे, जो मानव उपभोग के योग्य नहीं थे।