सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक वकील के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया, जिस पर एक आपराधिक मामले में साजिश का हिस्सा होने का आरोप है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल पेशे से वकील होने के आधार पर अभियोजन से छूट का दावा नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति पी.बी. वराले की पीठ ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ता की मुख्य आरोपी के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत किसी प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में आपराधिक मुकदमा चलाने का आधार नहीं हो सकती।
हालांकि, अदालत ने माना कि जांच के दौरान टेलीफोन पर हुई बातचीत भी प्रासंगिक हो सकती है और सिर्फ इस कारण से उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि संबंधित व्यक्ति वकील है।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि किसी आरोपी व्यक्ति के साथ फोन पर संपर्क होने मात्र से अभियोजन नहीं बनता, विशेष रूप से तब जब वकील के अपराध में संलिप्त होने का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य मौजूद नहीं है। इस पर अदालत ने असहमति जताई और कहा कि यदि जांच के दौरान वकील के खिलाफ आपराधिक संलिप्तता से संबंधित कोई सामग्री सामने आती है, तो मुकदमा चलाया जाना जरूरी है।
न्यायमूर्ति मित्तल ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वकील की भूमिका और उसकी प्रकृति का आकलन केवल ट्रायल के दौरान ही किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि संवेदनशील मामलों में दी गई कानूनी सलाह फोन पर देने के बजाय आमने-सामने दी जानी चाहिए, क्योंकि फोन पर हुई बातचीत संदेह उत्पन्न कर सकती है या उसका गलत अर्थ निकाला जा सकता है।
जब याचिकाकर्ता के वकील ने स्पष्ट किया कि इस मामले में ऐसी कोई ठोस आरोप नहीं लगाए गए हैं, तब पीठ ने कहा कि ऐसे तथ्यों का मूल्यांकन ट्रायल का हिस्सा है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि साक्ष्य समयानुसार रिकॉर्ड होंगे और वकीलों को चाहिए कि वे संवेदनशील मामलों में अपने मुवक्किलों से बातचीत में सावधानी बरतें।
इन टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और वकील के खिलाफ आपराधिक मुकदमा जारी रखने की अनुमति दी।