सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि पार्टी के उद्देश्यों में पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों के लिए काम करने की बात कही गई है, जो कि संविधान के अनुरूप है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने यह भी कहा कि केवल धर्म या जाति के आधार पर राजनीति करना देश के लिए समान रूप से खतरनाक है।
याचिकाकर्ता तिरुपति नरसिंह मुरारी की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि AIMIM इस्लामी शिक्षा और शरीयत कानून के प्रचार की बात करती है, जो संविधान के खिलाफ है।

इस पर पीठ ने कहा, “पार्टी का कहना है कि वह समाज के हर पिछड़े वर्ग के लिए काम करेगी, जिसमें वे मुस्लिम भी शामिल हैं जो आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। यही बात हमारा संविधान भी कहता है।”
जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया, “इस्लामी शिक्षा देना गलत नहीं है। अगर राजनीतिक दल शिक्षा संस्थान खोलते हैं तो हम उसका स्वागत करेंगे। इसमें कोई आपत्ति नहीं है।”
जब जैन ने तर्क दिया कि अगर वह हिंदू नाम से पार्टी पंजीकृत कराते हुए वेद, पुराण और उपनिषद पढ़ाने की बात करें तो चुनाव आयोग उनकी अर्जी खारिज कर देगा, तो अदालत ने जवाब दिया, “यदि चुनाव आयोग ऐसा कोई आपत्ति उठाता है, तो उचित मंच पर जाइए। धर्मग्रंथ पढ़ाने या सिखाने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई राजनीतिक दल अस्पृश्यता को बढ़ावा देने की बात करे, तो वह अवैध और असंवैधानिक होगा और उसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। लेकिन यदि कोई पार्टी संविधान द्वारा संरक्षित धार्मिक कानूनों की शिक्षा की बात करती है, तो उसमें कोई आपत्ति नहीं है।
पीठ ने याचिका को वापस लेने की अनुमति दी और कहा कि याचिकाकर्ता भविष्य में एक व्यापक और तटस्थ याचिका दायर कर सकते हैं, जिसमें राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली और सुधारों से जुड़े व्यापक मुद्दों को उठाया जाए।
इससे पहले, 16 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने AIMIM की पंजीकरण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि पार्टी ने कानून के तहत सभी आवश्यकताएं पूरी की हैं और अपने राजनीतिक विश्वासों को लेकर उसे पार्टी गठित करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।