सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2009 के फैसले भारत ड्रिलिंग एंड फाउंडेशन ट्रीटमेंट प्रा. लि. बनाम झारखंड राज्य की सत्यता पर सवाल उठाते हुए, इसे पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच (Larger Bench) को भेज दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत ड्रिलिंग इस सिद्धांत का प्रमाण नहीं है कि अनुबंध (Contract) में प्रतिबंधित दावे केवल नियोक्ता (Employer) पर लागू होते हैं और आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल पर नहीं।
जस्टिस पमिदिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा कि कानून में अनिश्चितता को दूर करने और स्पष्ट घोषणा के लिए इस मामले को बड़ी बेंच को भेजना आवश्यक है। यह मामला इस सवाल के इर्द-गिर्द घूमता है कि क्या मध्यस्थता (Arbitration) के दौरान ट्रिब्यूनल उन दावों को मंजूर कर सकता है जिन्हें कॉन्ट्रैक्ट में स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील झारखंड राज्य बनाम द इंडियन बिल्डर्स जमशेदपुर (Civil Appeal Nos. 8261-8262 of 2012) के रूप में दायर की गई थी, जिसमें झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।
विवाद 19 अप्रैल 2007 के एक मध्यस्थता अवार्ड (Arbitral Award) से उत्पन्न हुआ, जहां आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादी-दावेदार (Contractor) के पक्ष में कुछ ऐसे दावे मंजूर किए थे, जिन्हें कॉन्ट्रैक्ट में प्रतिबंधित माना गया था:
- दावा संख्या 3: कम उपयोग किए गए ओवरहेड्स (Underutilised overheads)।
- दावा संख्या 4: उपकरणों और मशीनरी के कम उपयोग के कारण नुकसान।
- दावा संख्या 6: लाभ की हानि (Loss of profit)।
राज्य ने धारा 34 के तहत इस अवार्ड को चुनौती दी। सिविल कोर्ट (सब-जज-1, जमशेदपुर) ने इन दावों को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि ये पार्टियों के बीच हुए समझौते के तहत स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित थे।
कॉन्ट्रैक्ट की प्रासंगिक शर्तें (Clauses) इस प्रकार थीं:
- क्लॉज 4.20.2: “किसी भी कारण से idle labour या idle machinery आदि के लिए कोई दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा…”
- क्लॉज 4.20.4: “व्यावसायिक नुकसान (Business loss) या ऐसे किसी भी नुकसान के लिए कोई दावा स्वीकार नहीं किया जाएगा।”
सिविल कोर्ट के आदेश के खिलाफ, कॉन्ट्रैक्टर ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत अपील दायर की। झारखंड हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के भारत ड्रिलिंग फैसले का हवाला देते हुए अपील की अनुमति दी और विवादित दावों के लिए आर्बिट्रल अवार्ड को बहाल कर दिया। हाईकोर्ट ने कॉन्ट्रैक्ट की निषेधात्मक शर्तों पर विस्तार से चर्चा नहीं की।
पक्षकारों की दलीलें
झारखंड राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील श्री राजीव शंकर द्विवेदी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने गंभीर गलती की है। उन्होंने कहा कि भारत ड्रिलिंग के फैसले का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और इसे सरकारी अनुबंधों में निषेधात्मक दावा क्लॉज की व्याख्या करने के लिए एक मानक के रूप में लागू किया जा रहा है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि कानून की स्थिति को स्पष्ट करने की अत्यंत आवश्यकता है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी के वकील श्री मनोज सी. मिश्रा ने मौजूदा नजीरों (Precedents) पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने भारत ड्रिलिंग के तर्क की जांच की, जिसमें यह कहा गया था कि अनुबंध का प्रतिबंध केवल विभाग पर लागू होता है, ट्रिब्यूनल पर नहीं। पीठ ने पाया कि भारत ड्रिलिंग ने बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज फॉर द पोर्ट ऑफ कलकत्ता बनाम इंजीनियर्स-डी-स्पेस-एज (1996) के फैसले पर भरोसा किया था।
पीठ ने वर्तमान मामले को पोर्ट ऑफ कलकत्ता से अलग बताया, यह देखते हुए कि बाद वाला मामला ब्याज (Interest) के भुगतान से संबंधित था, जो अधिनियम की धारा 31(7) द्वारा शासित होता है और यह मूल दावों से पूरी तरह अलग है।
कोर्ट ने हालिया फैसले पाम डेवलपमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2024) का हवाला देते हुए कहा:
“दावों को सीमित करने वाले संविदात्मक खंड (Contractual clauses) अनुबंध की स्वतंत्रता पर आधारित होते हैं। वे पार्टियों के सूचित विकल्पों को स्पष्ट करते हैं। यह हर आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल और कोर्ट का कर्तव्य है कि वह देखे कि अनुबंध क्या प्रदान करता है।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निषेधात्मक खंडों की प्रयोज्यता मुख्य रूप से पार्टियों के बीच समझौते पर निर्भर करती है, जो आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत है। पीठ ने कहा कि भारत ड्रिलिंग में अपनाया गया दृष्टिकोण कॉक्स एंड किंग्स लिमिटेड (2024) और सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन फॉर रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन (CORE) (2024) जैसे हालिया फैसलों में निर्धारित ‘पार्टी स्वायत्तता’ (Party Autonomy) के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि स्पष्टता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए भारत ड्रिलिंग के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
कोर्ट ने आदेश दिया:
“हमारी राय में, भारत ड्रिलिंग इस प्रस्ताव के लिए कोई अधिकार (Authority) नहीं है कि एक अपवादित खंड (Excepted clause) या निषिद्ध दावा केवल नियोक्ता पर लागू होता है और आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल पर नहीं… हम पुनर्विचार और आधिकारिक निर्णय के लिए भारत ड्रिलिंग को बड़ी बेंच के पास भेज रहे हैं।”
रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि बड़ी बेंच के गठन के लिए उचित आदेश प्राप्त करने हेतु इस फैसले को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के समक्ष रखा जाए।

