सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार, अप्राकृतिक यौन संबंध, धमकी और दुर्व्यवहार के आरोपों पर आधारित एक एफआईआर को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह मामला सहमति पर आधारित संबंध का था और इसमें आपराधिक कानून की कार्यवाही उचित नहीं है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने माना कि जब दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से संबंध बना हो और बाद में वह बिगड़ जाए, तो उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 या 506 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। अदालत ने आरोपी के पक्ष में अपील स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
पृष्ठभूमि
यह मामला 31 जुलाई 2023 को महाराष्ट्र के कराड पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर से उत्पन्न हुआ था। शिकायतकर्ता, जो एक तलाकशुदा महिला है और अपने चार साल के बच्चे के साथ रहती है, ने आरोप लगाया था कि जून 2022 से जुलाई 2023 तक आरोपी युवक ने उसे शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए।
एफआईआर के अनुसार, महिला ने शुरुआत में विरोध किया लेकिन आरोपी के शादी के वादे पर वह संबंध के लिए राजी हो गई। इसके बाद दोनों के बीच कई बार मुलाकातें और होटल में रुकने जैसी घटनाएं हुईं। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि युवक ने उससे पैसे उधार लिए और उसकी कार का निजी उपयोग किया। जब महिला आरोपी के गांव गई और उसके परिवार से शादी की बात की, तो उन्होंने धार्मिक भिन्नता के आधार पर विवाह से इनकार कर दिया। इसके 23 दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई।
निचली अदालतों में कार्यवाही
23 अगस्त 2023 को कराड के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को अग्रिम जमानत दी। कोर्ट ने कहा:
“अभियोक्ता एक प्रौढ़ महिला है, जो पूरी तरह से समझदार है और यदि उसने आरोपी से यौन संबंध बनाए हैं, तो वह पूरी तरह से उसकी सहमति से हुए माने जाएंगे… जब दो युवा पुरुष और महिला आपसी भावनात्मक लगाव के कारण शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो उसे बलपूर्वक नहीं माना जा सकता।”
इसके बाद आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत एफआईआर और चार्जशीट को रद्द करने के लिए याचिका दायर की, जिसे 28 जून 2024 को खारिज कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में दलीलें और निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता की ओर से कहा गया कि यह एफआईआर देरी से दर्ज हुई है, शिकायतकर्ता ने स्वयं लंबे समय तक संबंध बनाए रखा, और यह मामला पूर्णतः सहमति पर आधारित था। यह भी तर्क दिया गया कि मामला State of Haryana vs. Bhajan Lal के सिद्धांतों के अंतर्गत आता है, जिसमें मनगढ़ंत और दुर्भावनापूर्ण आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है।
अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता ने स्वयं एफआईआर में स्वीकार किया है कि वह लंबे समय तक आरोपी के साथ मिलती रही और होटल में भी गई। इस आधार पर अदालत ने कहा:
“यह भी कोई तार्किक संभावना नहीं है कि शिकायतकर्ता, जो पहले से विवाहित थी और जिसकी एक चार साल की संतान है, उसे आरोपी द्वारा धोखा दिया जाता रहेगा या वह ऐसे व्यक्ति के साथ लंबी अवधि तक संपर्क या शारीरिक संबंध बनाए रखेगी, जिसने उसका यौन उत्पीड़न किया हो और उसका शोषण किया हो।”
अदालत ने आगे यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने दिसंबर 2022 में अपने पहले पति से तलाक (खुलानामा) लिया था, जबकि उसके और आरोपी के बीच संबंध इससे पहले ही शुरू हो चुके थे। ऐसे में शादी के झूठे वादे के आधार पर सहमति का तर्क भी टिकाऊ नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत को दोहराया:
“एक सहमति पर आधारित संबंध का बाद में टूट जाना या दूरी आना आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने का आधार नहीं बन सकता। इस प्रकार के मामले न्यायपालिका पर अनावश्यक बोझ डालते हैं और एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाते हैं।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(n) या 506 के अपराध सिद्ध नहीं होते और यह कार्यवाही केवल उत्पीड़न प्रतीत होती है। इसलिए, अपील स्वीकार की गई, एफआईआर और उससे उत्पन्न सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया गया, और आरोपी को अभियोजन से मुक्त कर दिया गया।