राज्यपाल और राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों पर राष्ट्रपति की राय याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया

सुप्रीम कोर्ट ने आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दायर राष्ट्रपतिीय संदर्भ (Presidential Reference) पर केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। यह संदर्भ संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों, विशेष रूप से विधेयकों पर हस्ताक्षर (assent) देने की शक्तियों को स्पष्ट करने के लिए किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं, ने मामले की सुनवाई अगले मंगलवार के लिए सूचीबद्ध की। CJI ने कहा कि कोर्ट अगस्त में मामले की विस्तृत सुनवाई करने का प्रस्ताव रखता है। भारत के महान्यायवादी (Attorney General) आर. वेंकटारमणि से कोर्ट की मदद करने का अनुरोध किया गया, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने केंद्र के लिए नोटिस को औपचारिक रूप से छोड़ने (waive) की घोषणा की।

केरल और तमिलनाडु ने उठाए आपत्तियों के संकेत

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वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल, जो केरल की ओर से पेश हुए, ने कहा कि राज्य इस संदर्भ की स्वीकार्यता (maintainability) पर सवाल उठाएगा। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन, जो तमिलनाडु की ओर से पेश हुए, ने कहा कि संदर्भ में उठाए गए मुद्दे पहले ही तमिलनाडु गवर्नर केस के फैसले में कवर हो चुके हैं, और तमिलनाडु भी स्वीकार्यता को चुनौती देगा।

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यह संदर्भ सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आया है, जिसमें तमिलनाडु गवर्नर के मामले में अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा (timeline) तय की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों पर अनिश्चितकालीन विलंब (pocket veto) नहीं कर सकते और निर्णय के लिए तीन महीने की अधिकतम सीमा रखी थी। अगर विधेयक राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति को भी तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।

कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर समयसीमा का उल्लंघन होता है, तो राज्य सरकार कोर्ट से मंडामस रिट (writ of mandamus) की मांग कर सकती है। इस फैसले में कोर्ट ने यह भी घोषित किया था कि जिन दस विधेयकों को तमिलनाडु के राज्यपाल ने एक साल से अधिक समय तक लंबित रखा, वे माने जाएंगे कि उन पर स्वीकृति मिल चुकी है (deemed assent)।

राजनीतिक विवाद और महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न

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तमिलनाडु मामले के फैसले की तीखी आलोचना पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने की थी, जिन्होंने सवाल उठाया था कि क्या कोर्ट को राष्ट्रपति को कोई निर्देश देने का अधिकार है। उन्होंने अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट की शक्तियों को “न्यूक्लियर मिसाइल” तक कह दिया था।

अब राष्ट्रपतिीय संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के सामने कई महत्वपूर्ण संवैधानिक सवाल रखे गए हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • अनुच्छेद 200 के तहत विधेयक प्राप्त होने पर राज्यपाल के पास क्या विकल्प होते हैं?
  • क्या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे होते हैं?
  • क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल या राष्ट्रपति का विवेकाधिकार न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
  • जहां संविधान में समयसीमा तय नहीं है, वहां क्या कोर्ट समयसीमा तय कर सकता है?
  • क्या अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट ऐसी दिशा-निर्देश जारी कर सकता है जो संविधान या कानून के मौजूदा प्रावधानों के विपरीत हों?
  • क्या राज्यपाल की स्वीकृति के बिना कोई राज्य विधेयक कानून में परिणत हो सकता है?
  • क्या कोई विधेयक कानून बनने से पहले ही न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकता है?
  • क्या संघ और राज्यों के बीच विवादों के लिए केवल अनुच्छेद 131 के तहत ही समाधान संभव है?
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ध्यान देने वाली बात यह है कि जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस चंदुरकर, जो इस संविधान पीठ में शामिल हैं, केरल राज्यपाल मामले की सुनवाई भी कर रहे हैं, जिसमें केरल सरकार का कहना है कि यह मामला तमिलनाडु फैसले से आच्छादित है। केंद्र सरकार इस दावे का विरोध कर रही है और कोर्ट से कह रही है कि पहले राष्ट्रपतिीय संदर्भ की सुनवाई पूरी होनी चाहिए।

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