PMLA फैसले की समीक्षा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 31 जुलाई को करेगा सुनवाई, दो अहम मुद्दों पर फिर से विचार संभव

 सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2022 के अपने फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 31 जुलाई तक के लिए टाल दी। इस फैसले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में गिरफ्तारी, संपत्ति जब्ती, तलाशी और जब्ती जैसी व्यापक शक्तियां दी गई थीं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने यह फैसला केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुपलब्ध होने के कारण लिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी इस स्थगन पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

7 मई को अदालत ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया था कि वे उन मुद्दों को स्पष्ट करें जिन पर दोबारा विचार जरूरी है। केंद्र ने यह रुख अपनाया कि समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई केवल उन्हीं दो बिंदुओं तक सीमित होनी चाहिए जिन पर अगस्त 2022 में नोटिस जारी किया गया था:

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  1. क्या ईसीआईआर (Enforcement Case Information Report) की प्रति आरोपी को देना अनिवार्य है?
  2. क्या मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में दोष सिद्ध करने का बोझ आरोपी पर डालने वाली धारा 24 की वैधता पर पुनर्विचार जरूरी है?
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कपिल सिब्बल ने पहले भी यह दलील दी थी कि यह मामला संविधान से जुड़े बड़े सवाल उठाता है और इसे बड़ी पीठ को सौंपा जाना चाहिए।

गौरतलब है कि जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में गिरफ्तारी और जांच के विशेष अधिकार दिए थे और कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग कोई सामान्य अपराध नहीं बल्कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिए खतरा है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि ईडी के अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं माने जाएंगे और ईसीआईआर को प्राथमिकी (FIR) के समान नहीं माना जा सकता।

अदालत ने कहा था कि हर मामले में ईसीआईआर की प्रति देना जरूरी नहीं है, बशर्ते गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी के कारण बताए जाएं।

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इस फैसले की विपक्षी दलों ने आलोचना करते हुए इसे सरकार द्वारा अपने विरोधियों को परेशान करने का हथियार बताया था। कानून की विभिन्न धाराओं को चुनौती देने वाली करीब 200 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग कानून की धारा 45, जो इन अपराधों को गैर-जमानती बनाती है और जमानत के लिए दोहरी शर्तें लगाती है, न तो मनमानी है और न ही असंवैधानिक।

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अब 31 जुलाई को होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट दो मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करेगा, लेकिन याचिकाकर्ता कानून की व्यापक समीक्षा की मांग जारी रख सकते हैं।

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