17 फरवरी 2020 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission – PC) प्रदान किया जाए। जस्टिस डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए लैंगिक आधार पर भेदभावपूर्ण नीति को असंवैधानिक करार दिया। इस फैसले में कोर्ट ने सेना में सेवा देने वाली महिला अधिकारियों की उपलब्धियों का विशेष रूप से उल्लेख किया, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी का उदाहरण प्रमुख रूप से दिया गया।
पृष्ठभूमि:
यह मामला महिलाओं को पुरुष लघु सेवा आयोग (Short Service Commission – SSC) अधिकारियों के समकक्ष स्थायी कमीशन देने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं से जुड़ा था। वर्ष 2003 और 2006 में महिला अधिकारियों और अधिवक्ता बबीता पुनिया द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई थीं। हालांकि हाईकोर्ट ने 2010 में महिलाओं के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने इसके क्रियान्वयन में देरी की, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने सशक्त और स्पष्ट शब्दों वाले फैसले में महिला अधिकारियों के योगदान को मान्यता दी और सरकार द्वारा शारीरिक क्षमता, मातृत्व और युद्धक्षेत्र की स्थितियों को आधार बनाकर महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देने के तर्क को खारिज किया। पीठ ने कहा:

“भारतीय सेना की महिला अधिकारियों ने बल को गौरवान्वित किया है। ये तथ्य न्यायालय की कार्यवाही के दौरान प्रस्तुत हुए हैं और इन्हें खंडित नहीं किया गया।”
(पैरा 56, पृष्ठ 873)
कोर्ट ने विशेष रूप से लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा:
“लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी (आर्मी सिग्नल कोर) बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास ‘एक्सरसाइज फोर्स 18’ में भारतीय सेना की टुकड़ी का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। यह भारत द्वारा आयोजित अब तक का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अभ्यास था। उन्होंने 2006 में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत कांगो में सेवा दी, जहाँ वह संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शांति बनाए रखने और मानवीय सहायता प्रदान करने जैसे दायित्वों में शामिल थीं।”
यह उद्धरण इस तर्क का स्पष्ट खंडन था कि महिलाएं नेतृत्व या कठिन सैन्य कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं होतीं।
न्यायालय का निर्णय:
- कोर्ट ने कहा कि केवल 14 वर्ष से कम सेवा देने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नीति मनमानी है, क्योंकि देरी सरकार की विफलता से हुई।
- कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी सेवा दे रही SSC महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के लिए पात्र माना जाए, चाहे उनकी सेवा अवधि 14 या 20 वर्ष से अधिक क्यों न हो।
- कोर्ट ने महिला अधिकारियों को कमांड और क्राइटेरिया पदों से वंचित रखने की नीति को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार देते हुए रद्द कर दिया।
- पीठ ने कहा:
“महिला SSC अधिकारियों को केवल स्टाफ पदों तक सीमित रखने का पूर्ण प्रतिबंध, सेना में करियर उन्नति के उद्देश्य से दिए जाने वाले स्थायी कमीशन की भावना को पूरा नहीं करता।”
अंतिम निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि:
- सभी सेवा में महिला SSC अधिकारियों को सेवा अवधि की परवाह किए बिना स्थायी कमीशन पर विचार किया जाए।
- 25 फरवरी 2019 की नीति के तहत “केवल स्टाफ पदों” की शर्त लागू नहीं होगी।
- जिन अधिकारियों को स्थायी कमीशन मिलेगा, उन्हें प्रमोशन, वित्तीय लाभ समेत सभी संबंधित लाभ दिए जाएंगे।
निष्कर्ष:
यह ऐतिहासिक फैसला भारतीय सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक निर्णायक कदम रहा। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि संविधान में दिए गए अधिकार और पेशेवर योग्यता लिंग आधारित पुराने पूर्वग्रहों से ऊपर हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी जैसी महिला अधिकारियों की उपलब्धियों का उल्लेख कर सुप्रीम कोर्ट ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि महिलाएं न केवल सेना में योगदान देने के लिए सक्षम हैं, बल्कि नेतृत्व के लिए भी पूर्ण रूप से उपयुक्त हैं।