इतिहासिक स्मारक पर अवैध कब्जे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने डिफेंस कॉलोनी RWA पर 40 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में डिफेंस कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) को लोदी कालीन स्मारक “शेख अली की गुंबद” पर अवैध कब्जे के लिए 40 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह आदेश ऐसे समय आया है जब RWA ने पिछले छह दशकों से इस स्मारक पर कब्जा जमाया हुआ था, जिससे उसकी संरचनात्मक मजबूती और ऐतिहासिक महत्त्व को गंभीर नुकसान पहुंचा।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने इस अवैध कब्जे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण और पुनर्स्थापन अत्यंत आवश्यक है। कोर्ट ने यह राशि दिल्ली सरकार के पुरातत्व विभाग को देने का आदेश दिया है, जो इस तरह के विरासत स्थलों के संरक्षण का जिम्मा संभालता है।

READ ALSO  हाई कोर्ट ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन पर हलफनामा दाखिल करने के लिए DU को आखिरी मौका दिया

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, “यह मुआवजा न केवल स्मारक के पुनर्स्थापन की लागत को पूरा करने के लिए है, बल्कि यह भविष्य में संरक्षित स्मारकों पर अतिक्रमण की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए भी जरूरी है।”

Video thumbnail

यह मामला स्थानीय निवासी राजीव सूरी द्वारा दायर याचिका के बाद सामने आया, जिसमें उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के 2019 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें स्मारक को 1958 के प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत संरक्षित घोषित करने से इनकार कर दिया गया था। सूरी ने अपनी याचिका में ब्रिटिश काल के पुरातत्वविद मौलवी ज़फ़र हसन द्वारा 1920 में किए गए सर्वेक्षण और ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए स्मारक के महत्व को रेखांकित किया।

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले सीबीआई को यह जांच सौंपने का निर्देश दिया था कि RWA इस स्मारक को अपने कार्यालय के रूप में किस तरह उपयोग करने लगी। जांच में सामने आया कि RWA ने स्मारक में झूठी छत जैसी कई संरचनात्मक बदलाव किए, जिससे उसकी ऐतिहासिकता और संरचना को भारी नुकसान पहुंचा।

READ ALSO  यदि तलाक़ के बाद परिसीमा के भीतर अपील दायर की जाती है तो पुनर्विवाह पर रोक लागू होगी- जानिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

2004 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस मकबरे को संरक्षित स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन RWA के विरोध के कारण यह प्रक्रिया बाधित हुई और अंततः 2008 में योजना को छोड़ना पड़ा।

कोर्ट ने इस मामले में स्वप्ना लिडल को भी नियुक्त किया, जो भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर न्यास (INTACH) की दिल्ली शाखा की पूर्व संयोजक हैं, ताकि वे स्मारक को हुए नुकसान और पुनर्स्थापन की आवश्यकता का आकलन करें। उनकी रिपोर्ट ने न्यायालय के निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

READ ALSO  गरीबों को प्राथमिकता के आधार पर लगे टीका: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles