चोरी के आरोप से बरी होने के बाद धारा 411 IPC के तहत दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 411 के तहत “चोरी की संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करने” के आरोप में दोषसिद्धि उस स्थिति में टिक नहीं सकती जब आरोपी को धारा 379 (चोरी) के तहत बरी कर दिया गया हो।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द करते हुए अपीलकर्ता एस. डी. शब्बुद्दीन को बरी कर दिया और कहा कि किसी व्यक्ति को चोरी की संपत्ति रखने के लिए दोषी ठहराने से पहले अभियोजन को यह सिद्ध करना होगा कि संपत्ति वास्तव में चोरी की हुई थी।

मामला: एफआईआर और आरोप

यह मामला 24 दिसंबर 2005 को दर्ज एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें चावल दलाल एम. नरसैया के लापता होने की सूचना थी। अभियोजन का आरोप था कि 22 दिसंबर 2005 को नरसैया की हत्या उसके पूर्व नियोक्ता और कारोबारी प्रतिद्वंद्वी मौलाना (आरोपी संख्या 1) द्वारा की गई।

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मौलाना पर आरोप था कि हत्या के बाद उसने ₹2,92,629 नकद, एक बाइक और एक मोबाइल फोन चुरा लिया। 16 जून 2007 को पुलिस ने चार्जशीट दायर की, जिसमें कहा गया कि मौलाना ने एस. डी. शब्बुद्दीन की मदद से ₹30,000 की रकम देकर शव को जलती चिता पर नष्ट करवा दिया।

ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय का फैसला

31 अगस्त 2006 को दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। वारंगल की प्रधान सत्र न्यायालय ने मौलाना के खिलाफ हत्या (धारा 302 IPC), सबूत मिटाने (धारा 201 IPC) और चोरी (धारा 379 IPC) के आरोप तय किए, जबकि शब्बुद्दीन के खिलाफ धारा 379 और 201 के तहत आरोप तय हुए।

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5 मार्च 2010 को ट्रायल कोर्ट ने दोनों को हत्या, सबूत मिटाने और चोरी के आरोपों से बरी कर दिया। लेकिन धारा 411 IPC के तहत दोषी ठहराते हुए 3 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई। यह दोषसिद्धि मौलाना से ₹2,60,000 और शब्बुद्दीन से ₹25,000 की बरामदगी के आधार पर दी गई, जिसे वे ठीक से स्पष्ट नहीं कर सके।

तेलंगाना उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई। इस दौरान मौलाना की मृत्यु हो गई। 7 मार्च 2024 को हाईकोर्ट ने धारा 411 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन सजा घटाकर 1 वर्ष कर दी। शब्बुद्दीन ने इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट में पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता की ओर से कहा गया कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि बरामद नकदी मृतक की चोरी की हुई संपत्ति थी। साथ ही यह भी कहा गया कि धारा 411 के तहत दोषसिद्धि के लिए आवश्यक है कि अभियोजन यह सिद्ध करे कि आरोपी को पता था या उसे विश्वास करने का कारण था कि संपत्ति चोरी की है।

यह भी तर्क दिया गया कि जब ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने दोनों को धारा 379 के तहत बरी कर दिया है, तो धारा 411 के तहत दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं रह सकती।

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वहीं राज्य की ओर से कहा गया कि मौलाना ने शब्बुद्दीन को ₹30,000 दिए थे ताकि वह शव को नष्ट करने में मदद करे, और उसी धनराशि में से ₹25,000 शब्बुद्दीन के घर से बरामद हुए थे। यह राशि मृतक से चुराई गई नकदी का हिस्सा थी।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने दो प्रमुख मुद्दों की पहचान की:

  1. क्या हाईकोर्ट ने आरोपी पर यह साबित करने का उल्टा बोझ डाला कि उसके पास से बरामद नकदी कहां से आई?
  2. क्या धारा 379 IPC के तहत बरी होने के बाद धारा 411 IPC के तहत दोषसिद्धि टिक सकती है?

पहले बिंदु पर कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने “गंभीर त्रुटि” की है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया:

“धारा 411 IPC के तहत केवल इस आधार पर दोषसिद्धि करना कि आरोपी बरामद राशि का संतोषजनक हिसाब नहीं दे सके, गलत और अव्यवस्थित है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि बरामद नकदी की कोई विशेष पहचान नहीं थी जिससे उसे मृतक की चोरी की संपत्ति के रूप में जोड़ा जा सके। अभियोजन को शुरुआत में आरोपों को साबित करना होता है — यह दायित्व अभियुक्त पर नहीं डाला जा सकता।

दूसरे बिंदु पर कोर्ट ने कहा कि धारा 411 के तहत दोषसिद्धि का आवश्यक तत्व यह है कि संपत्ति “चोरी की संपत्ति” होनी चाहिए।

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फैसले में कहा गया:

“जब ट्रायल कोर्ट ने दोनों आरोपियों को धारा 379 IPC के तहत बरी कर दिया है, तो यह समझ से परे है कि उसी अदालत ने कैसे यह निष्कर्ष निकाला कि वे धारा 411 IPC के तहत दोषी हैं।”

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि चोरी के आरोप पर अभियोजन की थ्योरी पहले ही खारिज हो चुकी थी और उसके खिलाफ कोई अपील नहीं हुई। इसलिए धारा 411 IPC के तहत दोषसिद्धि टिक नहीं सकती।

“यदि संपत्ति चोरी की नहीं है, तो धारा 411 के तहत आरोप कायम नहीं हो सकता।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए अपील स्वीकार की कि हाईकोर्ट ने “गंभीर त्रुटि” की थी और 7 मार्च 2024 का निर्णय रद्द कर दिया। अपीलकर्ता एस. डी. शब्बुद्दीन को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

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