सड़क दुर्घटना मुआवज़े से जुड़े एक महत्वपूर्ण निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मकान किराया भत्ता (HRA) जैसे भत्तों को भी मृतक की आय का हिस्सा माना जाएगा और इन्हें आश्रितों को मिलने वाले मुआवज़े की गणना में शामिल किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) और उच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए “अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण” को खारिज करते हुए मृतक के परिजनों को मिलने वाली राशि ₹7.23 लाख से बढ़ाकर ₹14.29 लाख कर दी।
मामला: लोकेंद्र कुमार की सड़क दुर्घटना में मृत्यु
यह अपील मृतक लोकेंद्र कुमार की पत्नी और दो नाबालिग बच्चों द्वारा दायर की गई थी, जिनकी मृत्यु 16 फरवरी 2009 को सोहना-गुड़गांव रोड पर एक सैंट्रो कार द्वारा टक्कर मारने से हो गई थी। पीड़ित पक्ष ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के अंतर्गत गुड़गांव के MACT के समक्ष ₹25 लाख का मुआवज़ा दावा किया था।
उनका तर्क था कि मृतक 35 वर्षीय लोकेंद्र कुमार R.M. Manpower Services, गुड़गांव में कार्यरत थे और ₹6,500 प्रतिमाह वेतन पाते थे। इसके अतिरिक्त उनकी कृषि से ₹5,000 मासिक आय भी थी। कंपनी के मैनेजर इंदर सिंह (PW-4) ने गवाही देते हुए वेतन पर्ची (Ex. P6) पेश की, जिसमें ₹6,500 मासिक वेतन दर्शाया गया था।

अधिकरण और हाईकोर्ट का निर्णय
हालांकि, MACT ने दो ESI फॉर्म्स—फॉर्म 6 और 6A—के बीच असंगति का हवाला देते हुए मृतक की आय ₹3,665 प्रतिमाह मानी, क्योंकि ₹6,500 में HRA और अन्य भत्ते शामिल थे। व्यक्तिगत खर्चों की कटौती और 8 के गुणक (multiplier) के आधार पर अधिकरण ने कुल ₹2,54,720 का मुआवज़ा दिया।
इसके विरुद्ध पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की गई, जिसने गुणक को 16 कर दिया और भविष्य की संभावनाओं के लिए 50% की बढ़ोतरी की, लेकिन मासिक आय ₹3,665 ही रखी। परिणामस्वरूप मुआवज़ा बढ़कर ₹7,23,680 हुआ। इस आदेश के विरुद्ध पीड़ितों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुतियाँ
अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता फुज़ैल अहमद अय्यूबी ने दलील दी कि MACT और हाईकोर्ट दोनों ने वेतन प्रमाणपत्र (Ex. P6) को नजरअंदाज़ किया, जो स्पष्ट रूप से ₹6,500 मासिक वेतन दिखाता है। उन्होंने यह भी कहा कि पारंपरिक मदों के अंतर्गत दिया गया मुआवज़ा Pranay Sethi मामले में संविधान पीठ द्वारा तय सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था।
वहीं बीमा कंपनी की ओर से अधिवक्ता सुमन बग्गा ने हाईकोर्ट के आदेश का समर्थन किया और अपील खारिज करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट द्वारा मुआवज़े में वृद्धि की गई थी, लेकिन यह “पर्याप्त नहीं” थी। न्यायालय के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि क्या HRA और अन्य भत्तों को आय से बाहर रखा जा सकता है?
पीठ ने अधिकरण की आलोचना करते हुए कहा:
“अत्यधिक तकनीकी आधार पर, फॉर्म 6 और 6A में विसंगति को लेकर, ट्रिब्यूनल ने मृतक की मूल आय ₹3,665 मानी और HRA व अन्य भत्तों को बाहर कर दिया।”
कोर्ट ने National Insurance Co. Ltd. v. Indira Srivastava के अपने पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि ‘आय’ शब्द का व्यापक अर्थ होता है:
“आय शब्द का अर्थ अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग हो सकता है। आज के सामाजिक संदर्भ में अदालत को केवल कर्मचारी के वेतन पर्चे तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन सभी सुविधाओं को भी देखना चाहिए जो पूरे परिवार को लाभ देती हैं।”
इस सिद्धांत के आधार पर अदालत ने कहा कि जब यह साबित हो गया कि भत्ते नियमित रूप से दिए जा रहे थे और उनका उपयोग परिवार की भलाई के लिए होता था, तो उन्हें भी आय में शामिल किया जाना चाहिए। न्यायालय ने यह मानते हुए कि दुर्घटना के समय मृतक की आय ₹6,500 प्रतिमाह थी, मुआवज़े की पुनर्गणना की।
संशोधित मुआवज़ा गणना
निर्भरता हानि (Loss of Dependency):
- मासिक आय: ₹6,500
- व्यक्तिगत खर्चों की 1/3 कटौती: ₹2,167
- भविष्य की संभावनाओं के लिए 50% वृद्धि: ₹2,167
- कुल मासिक निर्भरता हानि: ₹6,500
- वार्षिक × गुणक 16 = ₹12,48,000
पारंपरिक मदों में मुआवज़ा (Conventional Heads):
- संपत्ति हानि: ₹18,150
- अंतिम संस्कार खर्च: ₹18,150
- पत्नी को वैवाहिक consortium: ₹48,400
- बच्चों को पितृत्व consortium: ₹48,400 × 2 = ₹96,800
कुल मुआवज़ा: ₹14,29,500
अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि यह राशि 7% वार्षिक ब्याज दर पर उस तारीख से जमा की जाए, जिस दिन याचिका दायर की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने में हुई 1855 दिनों की देरी की अवधि को छोड़कर। यह राशि पत्नी और दो बच्चों के बीच 50:25:25 के अनुपात में वितरित की जाएगी।