सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सेवा रिकॉर्ड में कर्मचारी की जन्मतिथि को ठीक करने का अनुरोध 25 वर्षों की अत्यधिक देरी के बाद स्वीकार नहीं किया जा सकता है। विशेष रूप से तब, जब यह दावा नौकरी में शामिल होने के समय कर्मचारी की पारिवारिक स्थिति के संबंध में स्पष्ट तथ्यात्मक असंभवताओं को जन्म देता है। कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को अपनी जन्मतिथि 1960 से बदलकर 1972 करने की अनुमति दी गई थी।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ, मैसर्स भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, धनबाद के प्रबंधन द्वारा अपने कर्मचारी शाहदेव दास के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें केंद्रीय सरकारी औद्योगिक न्यायाधिकरण (CGIT) के उस फैसले को रद्द कर दिया गया था जिसने बदलाव की अनुमति दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
कर्मचारी शाहदेव दास 24 सितंबर, 1990 को भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की सेवा में शामिल हुए थे। नियुक्ति के समय, उनकी जन्मतिथि 18 सितंबर, 1960 को खुद श्री दास द्वारा की गई घोषणा के आधार पर सर्विस बुक में दर्ज की गई थी। सर्विस बुक में उनके आश्रितों का विवरण भी दर्ज था, जिसमें उनकी पत्नी श्रीमती केशरी देवी (उम्र 24 वर्ष), 6 महीने से 6 साल की उम्र की चार बेटियां और उनके पिता शामिल थे। फैसले में यह भी उल्लेख किया गया है कि सर्विस बुक पर 17 जून, 1992 की तारीख के साथ श्री दास के हस्ताक्षर हैं।

25 वर्षों तक, श्री दास ने दर्ज जन्मतिथि पर कोई आपत्ति नहीं जताई। हालांकि, अक्टूबर/नवंबर 2015 में, उन्होंने अपनी जन्मतिथि को 5 जनवरी, 1972 में बदलने का अनुरोध करते हुए सुधार के लिए आवेदन किया। यह दावा 5 नवंबर, 2015 को जारी एक स्थानांतरण/स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र पर आधारित था।
नियोक्ता ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, जिससे एक औद्योगिक विवाद उत्पन्न हुआ। CGIT, धनबाद ने 30 सितंबर, 2020 के अपने फैसले में, सुधार का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट की कार्यवाही
नियोक्ता ने CGIT के फैसले को रांची में झारखंड हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी। एक एकल न्यायाधीश ने तथ्यों और कानून की सराहना करने के बाद, 28 अक्टूबर, 2021 को नियोक्ता की रिट याचिका को स्वीकार कर लिया। एकल न्यायाधीश ने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड और अन्य बनाम श्याम किशोर सिंह सहित सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों पर भरोसा करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि “सेवा के अंत में 25 साल की देरी के बाद जन्मतिथि में सुधार के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”
इसके बाद श्री दास ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक अपील दायर की। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 6 सितंबर, 2023 के अपने फैसले से अपील की अनुमति दी, एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया और CGIT के फैसले को बहाल कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने नियोक्ता की अपील पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ के तर्क से असहमति जताई। पीठ ने कहा, “हम एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए तर्क से सहमत हैं कि 25 वर्षों की देरी के बाद जन्मतिथि में सुधार के दावे पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।”
कोर्ट ने कर्मचारी के दावे में एक महत्वपूर्ण और निर्विवाद विसंगति पाई। कोर्ट ने पाया कि यदि कर्मचारी की जन्मतिथि 5 जनवरी, 1972 मान ली जाए, तो वह 1990 में सेवा में शामिल होने के समय केवल 18 वर्ष का होता। कोर्ट ने इस मामले पर एक तीखी टिप्पणी की: “24 साल की पत्नी और 6 महीने से 6 साल की चार बेटियों का होना मुश्किल, लगभग असंभव है।”
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता और समय पर सवाल उठाया। फैसले में कहा गया है कि प्रमाण पत्र, जो कथित तौर पर 1987 का था, स्कूल छोड़ने के लगभग 28 साल बाद 5 नवंबर, 2015 को जारी किया गया था।
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि श्री दास ने 1992 में अपनी सर्विस बुक पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें मूल जन्मतिथि थी, और उन्होंने यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं दिया था कि किसी और की लापरवाही के कारण गलत तारीख दर्ज की गई थी।
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि खंडपीठ ने गलती की थी, सुप्रीम कोर्ट ने नियोक्ता की अपील को स्वीकार कर लिया। खंडपीठ के फैसले को रद्द कर दिया गया और एकल न्यायाधीश के उस आदेश की पुष्टि की गई, जिसने कर्मचारी के सुधार के दावे को खारिज कर दिया था।