भारत के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में नई दिल्ली के न्यू राजिंदर नगर मार्केट स्थित एक संपत्ति को डी-सील करने की अर्जी खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि विचाराधीन परिसर के पट्टे (lease) और बाद के फ्रीहोल्ड अधिकारों के तहत केवल भूतल (ground floor) को ही व्यावसायिक उपयोग की अनुमति थी, जबकि ऊपरी मंजिलों को स्पष्ट रूप से आवासीय उद्देश्यों के लिए मंजूरी दी गई थी।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऊपरी मंजिलों का व्यावसायिक उपयोग “रूपांतरण के लिए योग्य” (eligible for conversion) तो है, लेकिन इसकी अनुमति तभी दी जा सकती है जब आवेदक निर्धारित रूपांतरण शुल्क (conversion charges), अतिरिक्त फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) के नियमितीकरण के लिए जुर्माना, और सभी “गैर-कंपाउंडेबल निर्माण” (non-compoundable constructions) को हटाने जैसी शर्तों को पूरा करे।
यह आदेश आई.ए. संख्या 203615 (2024) में पारित किया गया, जो 1985 की मुख्य रिट याचिका (W.P. (C) No. 4677) (एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ) के तहत दायर की गई थी।
 
मामले की पृष्ठभूमि
यह मुख्य रिट याचिका (PIL) 1985 में दायर की गई थी, जो दिल्ली में परिसरों के दुरुपयोग और अनधिकृत निर्माण से संबंधित एक जनहित याचिका थी। सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2006 के एक आदेश द्वारा, कानून के कार्यान्वयन की निगरानी और अनधिकृत रूप से निर्मित या परिवर्तित परिसरों पर कार्रवाई के लिए एक तीन-सदस्यीय मॉनिटरिंग कमेटी (Monitoring Committee) का गठन किया था।
बाद में, 13 सितंबर 2022 को, कोर्ट ने संपत्तियों की सीलिंग, डी-सीलिंग, नियमितीकरण और विध्वंस से संबंधित मामलों पर विचार करने के लिए एक ज्यूडिशियल कमेटी (Judicial Committee) नियुक्त की।
मौजूदा आवेदक (न्यू राजिंदर नगर मार्केट, प्लॉट नंबर 106 का मालिक) ने इसी ज्यूडिशियल कमेटी के 18 दिसंबर 2023 के एक सामान्य आदेश के आधार पर अपने ‘व्यावसायिक परिसर’ को डी-सील करने की मांग की थी। गौरतलब है कि दिल्ली नगर निगम (MCD) ने भी ज्यूडिशियल कमेटी के उसी आदेश को अलग से चुनौती दी थी।
पक्षों की दलीलें
आवेदक का तर्क था कि उक्त परिसर हमेशा से ही व्यावसायिक उपयोग के लिए था। इसके लिए ज्यूडिशियल कमेटी के आदेश, 1957 के लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस (L&DO) के एक पत्र (जो उसी बाजार के किसी अन्य प्लॉट से संबंधित था), और 1974-75 के लीज डीड्स का हवाला दिया गया, जिसमें “बिजनेस फ्लैट” शब्द का इस्तेमाल था। आवेदक ने यह भी दावा किया कि उसके पूर्ववर्ती-मालिक ने 1961 में ही पहली मंजिल का निर्माण व्यावसायिक उपयोग के लिए कर लिया था और विभिन्न दस्तावेजों में संपत्ति को “दुकान” या “व्यावसायिक” बताया गया था।
दिल्ली नगर निगम (MCD) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्री संजीब सेन ने इन दावों का पुरजोर खंडन किया। MCD ने तर्क दिया कि केवल भूतल को ही व्यावसायिक मंजूरी थी। यह जोर देकर कहा गया कि आवेदक ने स्वयं ऊपरी मंजिलों पर आवासीय निर्माण के लिए आवेदन किया था और मंजूरी प्राप्त की थी। MCD ने न्यू राजिंदर नगर मार्केट को दिल्ली मास्टर प्लान (MPD)-2021 के तहत “शॉप-कम-रेसिडेंस” (दुकान-सह-आवास) लोकल शॉपिंग सेंटर (LSC) के रूप में वर्गीकृत किया, जहाँ ऊपरी मंजिलों के व्यावसायिक रूपांतरण की अनुमति है, लेकिन केवल “रूपांतरण शुल्क के भुगतान के अधीन।” MCD ने अनधिकृत निर्माण और FAR के उल्लंघन का भी आरोप लगाया।
कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले के विशिष्ट तथ्यों की जांच करने का विकल्प चुना और पाया कि ज्यूडिशियल कमेटी का आदेश “अधिक सामान्य प्रकृति का था, न कि व्यक्तिगत आधार पर।” कोर्ट ने 22 अगस्त 2024 के अपने एक प्राइमा फेसी (prima facie) अवलोकन का भी जिक्र किया कि कमेटी ने “इमारतों/इकाइयों के व्यक्तिगत मामलों को नहीं देखा था।”
आवेदक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की समीक्षा करने पर, कोर्ट ने पाया कि आवेदक के तर्क सबूतों द्वारा समर्थित नहीं थे:
- तीसरे पक्ष के दस्तावेजों पर: कोर्ट ने कहा कि वह “किसी तीसरे पक्ष को जारी पत्र या सप्लीमेंट्री लीज डीड्स पर भरोसा करने के लिए सहमत नहीं है, जो विचाराधीन प्लॉट से संबंधित नहीं हैं।”
- 1961 के निर्माण के दावे पर: कोर्ट ने पाया कि 1961 में व्यावसायिक पहली मंजिल बनाने का दावा, आवेदक के पूर्ववर्ती-मालिक के पक्ष में 1987 के लीज डीड (Annexure A-37) और कन्वेंस डीड (Annexure A-38) से सीधे तौर पर खंडित होता है। बेंच ने कहा कि ये दस्तावेज़ “स्पष्ट रूप से एक मंजिला इमारत (single storied building) की बात करते हैं,” जो 1961 में पहली मंजिल बनाने के तर्क को “खतरे में डालता है।”
- स्वीकृत योजना (Sanctioned Plan) पर: कोर्ट ने आवेदक के अपने 2005 के कन्वेंस डीड (Annexure A-49) के साथ संलग्न योजना (plan) को एक “महत्वपूर्ण सबूत” माना। इस दस्तावेज़ का शीर्षक था “प्रस्तावित शॉप-कम-रेसिडेंशियल बिल्डिंग प्लान… श्री विनोद कुमार अरोड़ा (आवेदक) के लिए।” कोर्ट ने पाया, “उक्त योजना दुकान की इमारत के ऊपर आवासीय अपार्टमेंट (residential apartments) को मंजूरी दर्शाती है… इसलिए ऊपरी मंजिलों के निर्माण के लिए स्वीकृत योजना स्पष्ट रूप से आवासीय उद्देश्यों के लिए थी, जैसा कि आवेदक द्वारा आवेदन किया गया था।”
- संपत्ति के वर्गीकरण पर: कोर्ट ने MCD के वर्गीकरण से सहमति जताते हुए पाया, “हम न्यू राजिंदर नगर मार्केट को MPD-2021 में नामित एक शॉप-कम-रेसिडेंस LSC पाते हैं।” कोर्ट ने यह भी कहा कि इमारत का FAR भी “MCD के इस तर्क को पुष्ट करता है कि दुकान के ऊपर आवासीय स्थानों का निर्माण किया गया था।”
अपने विश्लेषण को सारांशित करते हुए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला: “आवेदक द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के व्यापक अवलोकन पर… हम पाते हैं कि पट्टे और बाद के फ्रीहोल्ड अधिकारों के तहत केवल भूतल को ही व्यावसायिक क्षेत्र के रूप में उपयोग करने की अनुमति है।”
अदालत का फैसला
इन निष्कर्षों के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने परिसर को डी-सील करने और ऊपरी मंजिलों को व्यावसायिक रूप से उपयोग करने की अनुमति देने वाली आवेदक की अंतरिम अर्जी (Interlocutory Application) को खारिज कर दिया।
बेंच ने स्पष्ट किया, “हालांकि ऊपरी मंजिलें रूपांतरण के लिए योग्य हैं, यह केवल रूपांतरण शुल्क के भुगतान के बाद ही हो सकता है।” कोर्ट ने आगे कहा, “स्वीकृत सीमा से अधिक अतिरिक्त FAR को भी दंडात्मक शुल्क (penalty charges) का भुगतान करके नियमित किया जाना होगा और किसी भी गैर-कंपाउंडेबल निर्माण को हटाना होगा।”
कोर्ट ने MCD को परिसर का संयुक्त निरीक्षण (joint inspection) करने के लिए एक और नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। इस निरीक्षण के बाद एक लिखित आदेश जारी किया जाएगा जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख हो:
- कोई भी गैर-कंपाउंडेबल निर्माण।
- ऊपरी मंजिलों के लिए देय रूपांतरण शुल्क।
- अतिरिक्त FAR के नियमितीकरण के लिए दंडात्मक शुल्क।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आवेदक “गैर-कंपाउंडेबल निर्माणों/प्रोजेक्शन को हटाने और रूपांतरण शुल्क के साथ-साथ अतिरिक्त FAR के नियमितीकरण के लिए दंडात्मक शुल्क जमा करने संबंधी आदेश का पालन करने का हकदार होगा, ताकि ऊपरी मंजिलों पर व्यावसायिक गतिविधियां की जा सकें।”
इन निर्देशों के साथ, आई.ए. (I.A.) को खारिज कर दिया गया।


 
                                     
 
        



